Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
२८०] छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[ ३, २०७. वेउव्वियसरीरअंगोवंग-पंचसंघडण-वण्ण-गंध-रस- फास-तिरिक्खगइमणुसगइ-देवगइपाओग्गाणुपुव्वी-अगुरुअलहुअ-उवघाद-परघादउस्सास-उज्जोब दोविहायगइ-तस-बादर-पज्जत्त-पत्तेयसरीर-थिराथिरसुहासुह-सुभग दुभग सुस्सर-दुस्सर-आदेज्ज--अणादेज्ज-जसकित्तिअजसकित्ति-णिमिण-णीचुच्चागोद-पंचंतराइयाणं को बंधो को अबंधो ? ॥२०७॥
सुगमं ।
मिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी बंधा। एदे बंधा, अबंधा णत्थि ॥ २०८॥
एत्थ उदयादो बंधो पुव्वं पच्छा वा वोच्छिज्जदि त्ति विचारो णत्थि, एदासि पयडीणं बंधोदयवोच्छेदाभावादो । पंचणाणावरणीय-चउदंसणावरणीय-तेजा-कम्मइयसरीर-वण्ण-गंध-रसफास-अगुरुअलहुअ-थिराथिर-सुहासुह-णिमिण-पंचंतराइयाणं सोदओ बंधो, धुवोदयत्तादो । देवाउ-देवगइ-वेउब्वियसरीर-वेउब्वियसरीरअंगोवंग-देवगइपाओग्गाणुपुव्वीणं परोदओ बंधो,
संहनन, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, तिर्यग्गति, मनुष्यगति व देवगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपधात, परघात, उच्छ्वास, उद्योत, दो विहायोगतियां, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, दुर्भग, सुस्वर, दुस्वर, आदेय, अनादेय, यशकीर्ति, अयशकीर्ति, निर्माण, नीच व ऊंच गोत्र और पांच अन्तराय, इनका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ २०७॥
यह सूत्र सुगम है।
मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, अबन्धक कोई नहीं हैं ॥ २०८ ॥
__ यहां उदयसे बन्ध पूर्वमें या पश्चात् व्युच्छिन्न होता है, यह विचार नहीं है, क्योंकि, इन प्रकृतियोंके बन्ध व उदयके व्युच्छेदका यहां अभाव है।
पांच ज्ञानावरणीय, चार दर्शनावरणीय, तैजस व कार्मण शरीर, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, निर्माण और पांच अन्तरायका स्वोदय बन्ध होता है, क्योंकि, ये ध्रुवोदयी प्रकृतियां हैं। देवायु, देवगति, वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिकशरीरांगोपांग और देवगतिप्रायोग्यानुपूर्वीका परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, इन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org