Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३, १८९. ]
कसायमग्गणाए बंधसामित्तं
[ २७१
सास सम्मादिट्टी सांतर - णिरंतरो । कधं णिरंतरो ? असंखेज्जवासाउअतिरिक्ख मणुस्सेसु सुहुले स्सियसंखेज्जवासा उएसु च णिरतरबंधुवलंभादो । उवरि णिरंतरो, पडिवक्खपयडीए बंधाभावाद |
मिच्छाइट्टिम्हि तेदालीसुत्तरपच्चया, सासणे अट्ठत्तीस, बारसकसायाणमभावादो । सम्मामिच्छादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठीसु जहाकमेण चोत्तीस- सत्तत्तीसपच्चया, णवकसायपच्चयाभावादो | संजदासंजदेसु एक्कत्तीसपच्चया, छक्क्सायाभावादो । पमत्तसंजदेसु एक्कवीसपच्चया, कसायतियाभावादो । अप्पमत्त - अपुव्वकरणेसु एक्कूणवीसपच्चया, कसायतियाभावादो । उवरि तेरस आदि काढूण एगूणादिकमेण पच्चया जाणिय वत्तव्वा । सेसं सुगमं ।
पंचणाणावरणीय चउदसणावरणीय चउसंजलण- पंचं तराइयाणि मिच्छाइट्ठी चउगइसंजुत्तं, सासणसम्माइट्ठी तिगइसंजुत्तं, सम्मामिच्छाइट्ठि - असंजद सम्माइट्टिणो देव- मणुसगइसंजुत्तं, उवरिमा देवगइसंजुत्तमगइसंजुत्तं च बंधंति । सादावेदणीय - जसकित्तीओ मिच्छाइडिसासणसम्माइट्टिणो तिगइसंजुत्तं, णिरयगईए सह बंधाभावाद। । उवरि णाणावरणभंगो । उच्चा
उच्चगोत्रका मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानों में सान्तर- निरन्तर बन्ध होता है । निरन्तर बन्ध कैसे होता है ? क्योंकि, असंख्यातवर्षायुष्क तिर्यच और मनुष्यों में तथा शुभ लेश्यावाले संख्यातवर्षायुष्कों में भी उसका निरन्तर बन्ध पाया जाता है। ऊपर निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, वहां उसकी प्रतिपक्ष प्रकृतिके बन्धका अभाव है ।
मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में तेतालीस और सासादन गुणस्थान में अड़तीस उत्तर प्रत्यय हैं, क्योंकि, यहां बारह कषायका अभाव है । सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयत सम्यग्दृष्टि गुणस्थानों में यथाक्रम से चौंतीस और सैंतीस उत्तर प्रत्यय हैं, क्योंकि, यहां नौ कषाय प्रत्ययोंका अभाव है। संयतासंयतों में इकतीस उत्तर प्रत्यय हैं, क्योंकि, उनमें छह कषायों का अभाव है । प्रमत्तसंयतों में इक्कीस प्रत्यय हैं, क्योंकि, उनमें तीन कषायका अभाव है । अप्रमत्त और अपूर्वकरण संयतों में उन्नीस प्रत्यय हैं, क्योंकि, यहां भी तीन कषायों का अभाव है । ऊपर तेरहको आदि लेकर एक कम दो कम इत्यादि क्रमसे प्रत्ययोंको जानकर कहना चाहिये । शेष प्रत्ययप्ररूपणा सुगम है ।
पांच ज्ञानावरणीय, चार दर्शनावरणीय, चार संज्वलन और पांच अन्तरायको मिथ्यादृष्टि चार गतियोंसे संयुक्त, सासादनसम्यग्दृष्टि तीन गतियोंसे संयुक्त, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि देव व मनुष्य गतिसे संयुक्त, तथा उपरिम जीव देवगति से संयुक्त और गतिसंयोग से रहित बांधते हैं । सातावेदनीय और यशकीर्तिको मिथ्यादृष्टि व सासादनसम्यग्दृष्टि तीन गतियोंसे संयुक्त बांधते हैं, क्योंकि, नरकगतिके साथ इनके बन्धका अभाव है । उपरिम गुणस्थानों में ज्ञानावरणके समान प्ररूपणा है ।
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