Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[ ३, १८९.
सुगमं ।
मिच्छाइटिप्पहुडि जाव अणियट्टि त्ति उवसमा खवा बंधा। एदे बंधा, अबंधा णत्थि ॥ १८९ ॥
एदासिं पयडीणं बंधो उदयादो पुव्वं पच्छा वा वोच्छिणो त्ति परिक्खा णत्थि, उदयवोच्छेदाभावादो तिण्णं कसायाणं णियमेण उदयाभावादो च । पंचणाणावरणीय-चउदसणावरणीय-कोहसंजलण-पंचंतराइयाणं सोदओ बंधो, धुवोदयत्तादो । सादावेदणीयस्स सव्वत्थ सोदय-परोदओ अद्धवोदयत्तादो। जसकित्तीए मिच्छाइटिप्पहुडि जाव असंजदसम्माइट्टि ति उच्चागोदस्स मिच्छाइट्टिप्पहुडि जाव संजदासंजदो त्ति सोदय-परोदओ बंधो । उवरि सोदओ चेव, पडिवक्खुदयाभावादो । तिण्णं संजलणाणं परोदएण बंधो, कोहोदयप्पणादो ।
पंचणाणावरणीय-चउर्दसणावरणीय-चउसंजलण-पंचंतराइयाणं णिरंतरो बंधो, धुवबंधित्तादो । सादावेदणीयस्स मिच्छाइट्ठिप्पहुडि जाव पमत्तसंजदो त्ति सांतरो बंधो। उवरि णिरंतरो, पडिवक्खपयडीए बंधाभावादो । एवं जसकित्तीए वत्तव्वं । उच्चागोदस्स मिच्छाइट्ठि
यह सूत्र सुगम है।
मिथ्यादृष्टिसे लेकर अनिवृत्तिकरण गुणस्थानके उपशमक और क्षपक तक बन्धक हैं। ये बन्धक हैं, अबन्धक कोई नहीं हैं ॥ १८९ ॥
इन प्रकृतियोंका बन्ध उदयसे पूर्व या पश्चात् व्युच्छिन्न होता है, इस प्रकारकी परीक्षा यहां नहीं है, क्योंकि, इनके उदयव्युच्छेदका अभाव है, तथा मानादिक तीन कषायोका नियमसे यहां उदय भी नहीं है । पांच ज्ञानावरणीय, चार दर्शनावरणीय, संज्वलन क्रोध और पांच अन्तराय, इनका स्वोदय बन्ध होता है, क्योंकि, ये ध्रुवोदयी हैं। सातावेदनीयका सर्वत्र स्वोदय-परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, वह अधुवोदयी है । यशकीर्तिका मिथ्यादृष्टिसे लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि तक, तथा उच्चगोत्रका मिथ्यादृष्टिसे लेकर संयतासंयत तक स्वोदय-परोदय बन्ध होता है। उपरिम गुणस्थानों में इनका स्वोदय ही बन्ध होता है, क्योंकि, वहां इनकी प्रतिपक्ष प्रकृतियोंके उदयका अभाव है। तीन संज्वलन कषायोंका परोदयसे बन्ध होता है, क्योंकि, यहां क्रोधकी प्रधानता है।
पांच ज्ञानावरणीय, चार दर्शनावरणीय, चार संज्वलन और पांच अन्तरायका निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, ये ध्रुवबन्धी है । सातावेदनीयका मिथ्यादृष्टिसे लेकर प्रमत्तसंयत गुणस्थान तक सान्तर बन्ध होता है । ऊपर निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, वहां उसकी प्रतिपक्ष प्रकृतिके बन्धका अभाव है। इसी प्रकार यशकीर्तिके भी कहना चाहिये।
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