Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[३, १०६. थीणगिद्धितियादीणं सव्वासिं पयडीण बंधो सोदय-परोदओ, उभयथा वि विरोहाभावादो । थीणगिद्धितिय-अणंताणुबंधिचउक्क-तिरिक्खाउआणं णिरंतरो बंधो, एगसमएण बंधुवरमाभावादो । तिरिक्खगइ-तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुव्वी-णीचागोदाणं सांतर-णिरंतरो बंध।। कधं णिरंतरो ? ण, तेउ-वाउक्काइयचरपंचिंदियमिच्छाइट्ठीसु सत्तमपुढवीमिच्छाइटि-सासणसम्माइट्टिणेरइएसु णिरंतरबंधुवलंभादो । सेसाणं सांतरो बंधो, एगसमएण बंधुवरमदंसणादो । पच्चया ओघपच्चयतुल्ला । तिरिक्खाउ-तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुवी-उज्जोवाणि दो वि तिरिक्खगइसंजुत्तं, इत्थिवेदं णिरयगईए विणा तिगइसंजुत्तं, चउसंठाण चउसंघडणाणि दो वि तिरिक्ख-मणुसगइसंजुत्तं, अप्पसत्थविहायगइ-दुभग-दुस्सर-अणादेज्ज-णीचागोदाणि मिच्छाइट्ठी तिगइसंजुत्तं बंधइ देवगईए विणा, सासणो तिरिक्ख-मणुसगइसंजुत्तं । सेसाओ पयडीओ मिच्छाइट्ठी चउगइसंजुत्तं सासणो तिगइसंजुत्तं । सेसं चिंतिय वत्तव्वं ।
स्त्यानगृद्धित्रय आदिक सब प्रकृतियोंका बन्ध स्वोदय परोदय होता है, क्योंकि, दोनों प्रकारसे भी उनके बन्धका विरोध नहीं है। स्त्यानगृद्धित्रय, अनन्तानुबन्धिचतुष्क और तिर्यगायुका निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, एक समयसे इनके बन्धविश्रामका अभाव है । तिर्यग्गति, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी और नीचगोत्रका सान्तर-निरन्तर अन्ध होता है।
शंका----निरन्तर बन्ध कैसे होता है ?
समाधान-यह शंका ठीक नहीं, क्योंकि, तेजकायिक व वायुकायिक जीबोंमेंसे आकर पंचेन्द्रिय मिथ्यादृष्टियों में उत्पन्न हुए जीवों तथा सप्तम पृथिवीके मिथ्यादृष्टि व सासादनसम्यग्दृष्टि नारकियोंमें उक्त प्रकृतियोंका निरन्तर बन्ध पाया जाता है।
शेष प्रकृतियोंका सान्तर बन्ध होता है, क्योंकि, एक समयसे उनके बन्धका विश्राम देखा जाता है। प्रत्ययोंकी प्ररूपणा ओघप्रत्ययोंके समान है । तिर्यगायु, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी और उद्योतको दोनों ही गुणस्थानवर्ती जीव तिर्यग्गतिसे संयुक्त बांधते हैं । स्त्रीवेदको नरकगतिके विना तीन गतियोंसे संयुक्त बांधते हैं । चार संस्थान और चार संहननको दोनों ही तिर्यग्गति व मनुष्यगतिसे संयुक्त बांधते हैं। अप्रशस्तविहायोगति, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय और नीचगोत्रको मिथ्यादृष्टि देवगतिके विना तीन गतियोंसे संयुक्त बांधते हैं, तथा सासादनसम्यग्दृष्टि तिर्यग्गति व मनुष्यगतिसे संयुक्त बांधते हैं । शेष प्रकृतियोंको मिथ्यादृष्टि चारों गतियोंसे संयुक्त और सासादनसम्यग्दृष्टि तीन गतियोंसे संयुक्त बांधते हैं। शेष विचार कर कहना चाहिये।
१ प्रतिषु ‘णिरंतरो बंधुवलंभादो' इति पाठः ।
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