Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३, १३७.] पुढविकाइयादिसु बंधसामित्तं
[ १९५ तीइंदिय-चरिंदियजादि-तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुवी-आदावुजोव-थावर-सुहुम-साहारपासरीराणि तिरिक्खगइसंजुत्तं बझंति । मणुसाउ-मणुसगइ-मणुसगइपाओग्गाणुपुवी-उच्चागोदाणि मणुसगइसंजुत्तं बझंति । सेसाओ पयडीओ तिरिक्ख-मणुसगइसंजुत्तं । तिरिक्खा सामी । बंधद्वाणं सुगमं । एत्थ बंधवोच्छेदो णत्थि । धुवबंधीणं चउविहो बंधो । सेसाणं सादि-अद्धवो ।
बादरपुढविकाइयाणमेवं चेव वत्तव्यं । णवरि बादरस्स सोदएण बंधो, सुहुमस्स परोदएण । बादरपुढविकाइयपज्जत्ताणं पि एवं चेव वत्तव्वं । णवरि पज्जत्तस्स सोदओ, अपज्जत्तस्स परोदओ बंधो। बादरपुढविकाइयअपज्जत्ताणं पि बादरपुढविकाइयभंगो । णवरि पज्जत्त-थीणगिद्धित्तिय परघादुस्सास-आदाबुज्जोव-जसकित्तीणं परोदओ, अपज्जत्त-अजसकित्तीर्ण सोदओ बंधो । परघादुस्सास-तस-बादर-पज्जत्त-पत्तेयसरीराणं सांतरो बंधो, अपज्जत्तएसु देवाणमुववादाभावाद। । पच्चया सत्तत्तीस, ओरालियकायजोगपच्चयस्साभावादो ।
सुहुमपुढविकाइयाणं पुढविकाइयभंगो। णवरि बादर-आदाउज्जोव-जसकित्तीणं परोदओ, सुहुम-अजसकित्तीणं सोदओ बंधो । परवादुस्सास-बादर-पज्जत-पत्तेयसरीराणं सांतरो
एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जाति, तिर्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, आताप, उद्योत, स्थावर, सूक्ष्म और सधारणशरीर, इनको तिर्यग्गतिसे संयुक्त वांधते हैं। मनुप्यायु, मनुष्यगति, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रको मनुप्यगतिसे संयुक्त बांधते हैं। शेष प्रकृतियोंको मनुष्य व तिर्यग्गतिसे संयुक्त बांधते हैं ! तिथंच स्वामी हैं । वन्धाध्वान सुगम है । यहां बन्धव्युच्छेद है नहीं। ध्रुववन्धी प्रकृतियोंका चारों प्रकारका वन्ध होता है । शेप प्रकृतियों का सादि व अध्रुव बन्ध होता है।
बादर पृथिवीकायिकोंकी भी इसी प्रकार प्ररूपणा करना चाहिये । विशेष इतना है कि बादरका स्वोदय और सूक्ष्मका परोदयले बन्ध होता है । बादर पृथिवीकायिक पर्याप्तोंकी भी इसी प्रकार प्ररूपणा करना चाहिये। विशेषता इतनी है कि पर्याप्तका स्वोदय और अपर्याप्तका परोदय वन्ध होता है। वादर पृथिवीकायिक अपर्याप्तोंकी भी प्ररूपणा बादर पृथिवीकायिकोंके समान है । विशेषता यह है कि पर्याप्त, स्त्यानगृद्धित्रय, परघात, उच्छ्वास, आताप, उद्योत और पशकीर्तिका परोदय; तथा अपर्याप्त और अयशकीर्तिका स्वोदय वन्ध होता है। परघात, उच्छ्वास, त्रस, बादर, पर्याप्त और प्रत्येकशरीरका सान्तर बन्ध होता है, क्योंकि, अपर्याप्तोंमें देवोंकी उत्पत्ति नहीं होती । प्रत्यय सैंतीस होते हैं, क्योंकि, उनके औदारिककाययोग प्रत्ययका अभाव है।
सूक्ष्म पृथिवीकायिकोंकी प्ररूपणा पृथिवीकायिकोंके समान है। विशेष यह है कि बादर, आताप, उद्योत और यशकीर्तिका परोदय; तथा सूक्ष्म और अयशकीर्तिका स्वोदय बन्ध होता है । परघात, उच्छ्वास, बादर, पर्याप्त और प्रत्येकशरीरका सान्तर
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