Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३, १४७.] जोगमग्गणाए बंधसामित्तं
[ २११ मिच्छाइट्ठिम्हि बंधो सांतर-णिरंतरो । कधं णिरंतरो ? ण, तेउ-वाउकाइएसु सत्तमपुढवीए' तिरिक्खेसुप्पण्णणेरइएसु च णिरंतरबंधुवलंभादो । सासणसम्मादिडिम्हि सांतरो, तत्थ तेसिमुववादाभावादो। [मणुसगइ-] मणुसगइपाओग्गाणुपुवीणं सांतर-णिरंतरो । कथं णिरंतरो ? आणदादिदेवेसु मणुसेसुप्पण्णेसु दुविहगुणेसु मुहुत्तस्संतो णिरंतरबंधुवलंभादो ।
ओरालियसरीरअंगोवंगस्स मिच्छाइट्ठिम्हि बंधो सांतर-णिरंतरो। कधं णिरंतरो ? ण, सणक्कुमारादिदेव-णेरइएसु तिरिक्ख-मणुस्सुप्पण्णेसु अंतोमुहुत्तं णिरंतरबंधुवलंभादो । सासणसम्मादिट्ठिम्हि णिरंतरो ।
मिच्छाइट्ठिम्हि तेदालीस, सासणे अद्रुतीसुत्तरपच्चया । सेसं सुगमं । तिरिक्खगइ[तिरिक्खगइ.]पाओग्गाणुपुव्वी-उज्जोवाणं तिरिक्खगइसंजुत्त। [मणुसगइ-]मणुसगइपाओग्गाणु
गुणस्थानमें सान्तर-निरन्तर होता है।
शंका-निरन्तर बन्ध कैसे होता है ?
समाधान-यह ठीक नहीं है, क्योंकि, तेज ध वायुकायिकोंमें तथा तिर्यंचों में उत्पन्न हुए सप्तम पृथिवीके नारकियोंमें उनका निरन्तर बन्ध पाया जाता है।
__ सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें सान्तर बन्ध होता है, क्योंकि, यहां उनके उत्पादका अभाव है । [मनुष्यगति और ] मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वीका सान्तर-निरन्तर बन्ध होता है।
शंका-निरन्तर बन्ध कैसे होता है ?
समाधान-क्योंकि, मनुष्योंमें उत्पन्न हुए आनतादिक देवोंमें दोनों गुणस्थानों में अन्तर्मुहूर्त तक निरन्तर बन्ध पाया जाता है। औदारिकशरीरांगोपांगका बन्ध मिथ्यावृष्टि गुणस्थानमें सान्तर-निरन्तर होता है।
शंका-निरन्तर बन्ध कैसे होता है ?
समाधान-यह ठीक नहीं, क्योंकि, तिर्यंच व मनुष्यों में उत्पन्न हुए सानत्कुमारादि देव और नारकियों में अन्तर्मुहर्त तक उसका निरन्तर बन्ध पाया जाता है।
सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें उसका निरन्तर बन्ध होता है।
मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें तेतालीस और सासादन गुणस्थानमें अड़तीस उत्तर प्रत्यय होते हैं। शेष प्रत्ययप्ररूपणा सुगम है। [तिर्यग्गति], तिर्यगतिप्रायोग्यानुर्वी और उद्योतका तिर्यग्गतिसे संयुक्त, [मनुष्यगति] और मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वीका मनुष्यगतिसे संयुक्त,
१ प्रतिषु 'मिग्छाइटिं वा' इति पाठः ।
२ प्रतिषु
सत्तमपुटवी' इति पाठः।
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