Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
२२.] छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[३, १५४. अणंताणुबंधिचउक्क-इत्थिवेद-अप्पसत्थविहायगइ-दुभग-दुस्सर-अणादेज्ज-णीचागोदाणं सोदय-परोदओ बंधो, वेउब्वियकायजोगम्मि पडिवक्खुदयदंसणादो । अवसेसाणं पयडीणं परोदओ बंधो, तासिमेत्युदयविरोहादो । थीणगिद्धितिय-अणंताणुबंधिचउक्कतिरिक्खाउआणं णिरंतरो बंधो, एगसमएण बंधुवरमाभावादो। तिरिक्खगइ-तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुव्वी-णीचागोदाणं सांतर-णिरंतरो बंधो । कधं णिरंतरो ? ण, सत्तमपुढविणेरइएसु णिरंतरबंधुवलंभादो। अवसेसाणं पयडीणं बंधो सांतरो, एगसमएण बंधुवरमदसणादो । पच्चया सुगमा। तिरिक्खाउ-तिरिक्खगइ-तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुब्बी-उज्जोवाणि तिरिक्खगइसंजुत्तं, सेससव्वपयडीओ तिरिक्ख-मणुसगइसंजुत्तं बंधंति । देव-णरइया सामी । बंधद्धाणं बंधविणट्ठट्ठाणं च सुगमं । सत्तण्हं धुवपयडीणं मिच्छाइट्ठिम्हि चउव्विहो बंधो । सासणे दुविहो बंधो।
मिच्छत्त-णqसयवेद-एइंदियजादि-हुंडसंठाण-असंपत्तसेवसंघडण-आदाव-थावरपयडीओ मिच्छाइट्ठिणा बज्झमाणियाओ । एत्थ मिच्छत्तस्स बंधोदया समं वोच्छिज्जति,
अनन्तानुबन्धिचतुष्क, स्त्रीवेद, अप्रशस्तविहायोगति, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय और नीचगोत्रका स्वोदय परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, वैक्रियिककाययोगमें इनकी प्रतिपक्ष प्रकृतियोंका उदय देखा जाता है। शेष प्रकृतियोंका परोदय बन्ध होता है, क्योंकि यहां उनके उदयका विरोध है। स्त्यानग्रद्धित्रय, अनन्तानबन्धिचतष्क और तिर्यगायका निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, एक समयसे इनके बन्धविश्रामका अभाव है। तिर्यग्गति, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी और नीचगोत्रका सान्तर- निरन्तर बन्ध होता है |
शंका-निरन्तर बन्ध कैसे होता है ?
समाधान -यह शंका ठीक नहीं, क्योंकि, सप्तम पृथिवीके नारकियों में उनका निरन्तर बन्ध पाया जाता है।
शेष प्रकृतियोंका वन्ध सान्तर होता है, क्योंकि, एक समयसे उनका बन्धविश्राम देखा जाता है । प्रत्यय सुगम हैं । तिर्यगायु, तिर्यग्गति, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी और उद्योतको तिर्यग्गतिसे संयुक्त, तथा शेष सब प्रकृतियोंको तिर्यग्गति व मनुष्यगतिसे संयुक्त बांधते हैं । देव व नारकी स्वामी हैं । बन्धाध्वान और बन्धविनष्टस्थान सुगम हैं ! सात ध्रुवप्रकृतियोंका मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें चारों प्रकारका बन्ध होता है । सासादनमें दो प्रकारका बन्ध होता है।
मिथ्यात्व, नपुंसकवेद, एकेन्द्रियजाति, हुण्डसंस्थान, असंप्राप्तसृपाटिकासंहनन, आताप और स्थावर, ये मिथ्यादृष्टिके द्वारा बध्यमान प्रकृतियां हैं। यहां मिथ्यात्वका बन्ध और उदय दोनों मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें साथ ही व्युच्छिन्न होते हैं, क्योंकि, उपरिम
१ अप्रतौ — बंधुवरमानाभावादो' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org