Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२२६ छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[३, १५५. बंधद्धाणं सुगमं । बंधवोच्छेदो णस्थि । बंधेण धुवपयडीणं' मिच्छाइट्ठिम्हि चउब्विहो बंधो । अण्णत्थ तिविहो, धुवाभावादो। सेसाणं पयडीणं बंधो सादि-अदुवो, अद्धवबंधित्तादो ।
थीणगिद्धितिय-अणंताणुबंधिचउक्कित्थिवेद-तिरिक्खगइ-च उसंठाण-चउसंघडणतिरिक्खगइपाओग्गाणुपुब्वि-उज्जोव-अप्पसत्थविहायगइ-दुभग-दुस्सर-अणादेज्ज - णीचागोदाणं परूवणा कीरदे- अणंताणुबंधिचउक्कित्थिवेदाणं बंधोदया समं वोच्छिज्जति सासणगुणट्टाणे, ण अण्णत्थ; मिच्छाइट्ठिम्हि तदणुवलंभादो। दुभग-अणादेज्ज-णीचागोदाण पुव्वं बंधो पच्छा उदओ वोच्छिज्जदि, उवरिमअसंजदसम्मादिहिगुणम्मि बंधेण विणा उदयस्सेव दंसणादो । अवसेसाणमेसो विचारो णस्थि, बंधस्सेकस्सेवुवलंभादो ।
अणंताणुबंधिचउक्किस्थिवेदाणं बंधो सोदय-परोदओ, उभयथावि अविरोहादो । दुभग-अणादेज्ज-णीचागोदाणं मिच्छाइट्ठिम्हि सोदय-परोदओ । सासणे परोदओ, णरइएसु अपज्जत्तद्धाए तदभावादो। सेससोलसपयडीओ परोदएणेव बझंति, तासिमेत्थुदयविरोहादो।
ध्वान सुगम है। बन्धव्युच्छेद नहीं है। बन्धसे ध्रुवप्रकृतियों का मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें चारों प्रकारका बन्ध होता है। अन्य गुणस्थानोंमें तीन प्रकारका वन्ध होता है, क्योंकि, वहां ध्रुव बन्धका अभाव है। शेष प्रकृतियोंका बन्ध सादि ब अध्रुव होता है, क्योंकि, वे अध्रुवबन्धी हैं।
स्त्यानगृद्धित्रय, अनन्तानुबन्धिचतुष्क, स्त्रीवेद, तिर्यग्गति, चार संस्थान, चार संहनन, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी, उद्योत, अप्रशस्तविहायोगति, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय और नीचगोत्रकी प्ररूपणा करते हैं- अनन्तानुवन्धिचतुष्क और स्त्रीवेदका बन्ध व उदय दोनों सासादन गुणस्थानमें साथ व्युच्छिन्न होते है, अन्यत्र नहीं, क्योंकि मिथ्याष्टि गुणस्थानमें उनके विच्छेदका अभाव है। दुर्भग, अनादेय और नीचगोत्रका पूर्वमें बन्ध और पश्चात् उदय व्युच्छिन्न होता है, क्योंकि, उपरिम असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें वन्धके विना केवल उदय ही देखा जाता है। शेष प्रकृतियोंके यह विचार नहीं है, क्योंकि, उनका केवल एक बन्ध ही यहां पाया जाता है ।
अनन्तानुबन्धिचतुष्क और स्त्रीवेदका बन्ध स्वोदय-परोदय होता है, क्योंकि, दोनों ही प्रकारसे कोई विरोध नहीं है। दर्भग, अनादेय और नीचगोत्रका गुणस्थानमें स्वोदय-परोदय बन्ध होता है । सासादन गुणस्थानमें परोदय वन्ध होता है, क्योंकि, नारकियोंमें अपर्याप्तकालमें सासादन गुणस्थानका अभाव है। शेष सोलह प्रकृतियां परोदयसे ही बंधती हैं, क्योंकि, यहां उनके उदयका विरोध है।
१ अप्रतौ — बंधणवपयडीणं ' इति पाठः । २ प्रतिषु 'धुवभावादो' इति पाठः ।
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