Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
परोदओ । सासणे परोदओ, देवगदीए तिस्से उदयाभावाद। ।
पंचणाणावरणीय छदंसणावरणीय बारसकसाय भय - दुगुंछा ओरालिय तेजा कम्मइयसरीरवण्ण-गंध--रस-फास-अगुरुअलहुअ -- उवघाद--परघादुस्सास -- बादर - पज्जत्त--पत्तेयसरी रणिमिणपंचतराइयाणं णिरंतरो बंधो, एत्थ धुवबंधित्तादो । सादासाद-हस्स-रदि - [अरदि-] सोग-थिराथिरसुहासुह- जसकित्ति - अजसकित्तीणं सांतरा बंधो, एगसमएण बंधुवरमदंसणादो । पुरिसवेद - समचउरससंठाण वज्जरिसहसंघडण -पसत्थविहायगइ-सुभग-सुस्वर-आदेज्जुच्चागोदाणं मिच्छाइट्ठिसास सम्मादिट्ठी बंधो सांतरा । असंजदसम्म । दिट्ठीसु णिरंतरो, पडिवक्खपयडीणं बंधाभावादो | पंचिंदियजादि - ओरालियसरीरअंगोवंग - तसणामाणं मिच्छाइट्ठिम्हि सांतर - णिरंतरो | कथं णिरंतरो ? ण, सणक्कुमारादिदेवेसु णेरइएसु च णिरंतरबंधुवलंभादो । सासणसम्मादिट्ठिअसंजदसम्मादिट्ठीसु णिरंतरो, पडिवक्खपयडीणं बंधाभावाद | मणुसगइ - मणुसाणुपुव्वीणं
[३, १५५.
है । सासादन गुणस्थानमें परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, देवगतिमें उसके उदयका अभाव है ।
पांच ज्ञानावरणीय, छह दर्शनावरणीय, बारह कषाय, भय, जुगुप्सा, औदारिक, तेजस व कार्मण शरीर, वर्ण, गन्ध. रस, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, निर्माण और पांच अन्तराय, इनका निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, यहां ये ध्रुवबन्धी हैं। साता व असातावेदनीय, हास्य, रति, [अरति], शोक, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, यशकीर्ति और अयशकीर्तिका सान्तर बन्ध होता है, क्योंकि, एक समय से इनका बन्धविश्राम देखा जाता है । पुरुषवेद, समचतुरस्रसंस्थान, वज्रर्षभसंहनन, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर, आदेय और उच्चगोत्र, इनका मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानोंमें सान्तर बन्ध होता है । असंयतसम्यग्दृष्टियों में निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, यहां प्रतिपक्ष प्रकृतियोंके बन्धका अभाव है । पंचेन्द्रिय जाति, औदारिकशरीरांगोपांग और त्रस नामकर्मका मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में सान्तरनिरन्तर बन्ध होता है ।
शंका — निरन्तर बन्ध कैसे होता है ?
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समाधान – नहीं, क्योंकि सनत्कुमारादि देवों और नारकियों में उनका निरन्तर बन्ध पाया जाता है ।
सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानोंमें निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि यहां प्रतिपक्ष प्रकृतियोंके बन्धका अभाव है । मनुष्यगति और मनुष्यगति
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