Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२५६ ] छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[ ३, १७७. मिच्छाइट्ठिम्हि बंधो चउव्विहो । उवरि तिविहो, धुवबंधाभावाद। । हस्स-रदीणं सव्वत्थ सादिअद्भुवो, अद्भुवबंधित्तादो।
मणुस्साउअस्स पुव्वं बंधो पच्छा उदओ वोच्छिण्णो, असंजदसम्मादिट्ठि-अणियट्टीसु जहाकमेण बंधोदयवोच्छेददंसणादो । मिच्छादिटि-सासणसम्मादिट्ठीसु सोदय-परोदएण बंधो । असंजदसम्मादिट्ठीसु परोदएणेव । कुदो ? साभावियादो । सम्बत्थ बंधो णिरंतरो, जहण्णबंधकालस्स वि अंतोमुहुत्तपमाणुवलंभादो। मिच्छादिहिस्स पंचास,सासणस्स पंचेतालीस पचया;
ओरालिय-वेउनियमिस्स-कम्मइयकायजोग-पुरिस-णवुसयपच्चयाणमभावादो । असंजदसम्मादिट्ठीसु चालीस पच्चया, ओघाच्चएसु' ओरालिय-ओरालियमिस्स-वेउव्यियमिस्स-कम्मइयकायजोग-पुरिस-णqसयवेदाणमभावादो । सेसं सुगमं । सव्वे वि मणुसगइसंजुत्तं चेव बंधति, अण्णगईहि सह विरोहादो। तिगइमिच्छादिट्ठि-सासणसम्मादिविणो सामी । असंजदसम्मादिष्टिणो देवा चेव सामी, अण्णस्थित्थिवेदोदइल्लाणं सम्मादिट्ठीणं मणुस्साउवस्स बंधाभावादो। बंधद्धाणं बंधविणट्ठट्ठाणं च सुगमं । सव्वत्थ सादि-अद्धवो बंधो ।
भय और जुगुप्साका मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें चारों प्रकारका बन्ध होता है । उपरिम गुणस्थानों में तीन प्रकारका बन्ध होता है, क्योंकि. वहां ध्रव बन्धका अभाव है। हास्य और रतिका सर्वत्र सादि व अध्रुव बन्ध होता है, क्योंकि, वे अधुववन्धी हैं।
__ मनुष्यायुका पूर्वमें बन्ध और पश्चात् उदय व्युच्छिन्न होता है, क्योंकि, असंयतसम्यग्दृष्टि और अनिवृत्तिकरण गुणस्थानों में क्रमसे उसके बन्ध व उदयका व्युच्छेद देखा जाता है । मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानों में स्वोदय-परोदयसे बन्ध होता है। असंयतसम्यग्दृगियों में परोदयसे ही बन्ध होता है, क्योंकि ऐसा स्वभाव ही है। सर्वत्र निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, उसका जघन्य बन्धकाल भी अन्तर्मुहर्त प्रमाण पाया जाता है । मिथ्याष्टिके पचास और सासादनसम्पदाप्टके पैंतालीस प्रत्यय है, क्योंकि, वहां औदारिकमिश्र, वैक्रियिकमिश्र, कार्मण काययोग, पुरुषवेद और नपुंसकवेद, प्रत्ययोंका अभाव है । असंयतसम्यग्दृष्टियों में चालीस प्रत्यय हैं, क्योंकि, ओघप्रत्ययों मेंसे औदारिक, औदारिकमिश्र, वैक्रियिकमिश्र, कार्मण काययोग, पुरुषवेद और नपुंसकवेद प्रत्ययाका अभाव है। शेष प्रत्ययप्ररूपणा सुगम है । सब ही मनुष्यगतिसे संयुक्त ही बांधते हैं, क्योंकि, अन्य गतियोंके साथ उसके बन्धका विरोध है । तीन गतियोंके मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि स्वामी हैं। असंयतसम्यग्दृष्टि देव ही स्वामी हैं, क्योंकि, अन्य गतियोंमें स्त्रीवेदोदय युक्त सम्यग्दृष्टियोंके मनुष्यायुके बन्धका अभाव है । बन्धाध्वान और बन्धविनष्ट स्थान सुगम हैं । सर्वत्र सादि व अध्रुव बन्ध होता है।
१ प्रतिषु — ओघपच्चयासु ' इति पाठः ।
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