Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, १७७.] वेदमागणाए बंधसामित्तं
[२६१ उवघाद-परघादुस्सास-पत्तेयसरीराणं असंजदसम्मादिट्ठीसु सोदय परोदओ बंधो, णिरयगईए अपज्जत्तासंजदसम्मादिट्ठीसु वि एदासिं बधुवलंभादो । तस बादर-पज्जत्त-पत्तेयसरीरपंचिंदियजादीणं मिच्छाइट्ठिम्हि बंधो सोदय-परोदओ, थावर- सुहुमापज्जत्त-साहारण-विगलिंदिएसु एदासिं बंधुवलंभादो । सव्वपयडीणं बंधस्स णत्थि देवाणं सामित्तं तत्थ णqसयवेदुदयाभावादो। एइंदिय-आदाव-थावराणं तिरिक्खगइ-मणुसगइ-मिच्छाइट्ठी चेव सामी, देवा ·ण होति; तेसु णसयवेदुदयाभावादो। अण्णो वि जदि भेदो अत्थि सो संभालिय' वत्तव्यो ।
जधा इत्थिवेदस्स परूवणा कदा तथा पुरिसवेदस्स वि कायव्वा । णवरि ओघपच्चएसु इत्थि-णqसयवेदपच्चया चेव सव्वगुणट्ठाणेसु अवणेदव्वा, सेसासेसपच्चयाणं तत्थ संभवादो। इथि-णqसयवेदाणं बंधो परोदओ, पुरिसवेदस्स सोदओ । उवघाद-परघादुस्सास-पत्तेयसरीराणमसंजदसम्मादिट्ठिम्हि सोदय-परोदओ बंधो । तित्थयरस्स परूवणा ओघतुल्ला । एवमण्णो वि जदि भेदो अत्थि सो संभालिय वत्तव्यो ।
उपघात, परघात, उच्छ्वास और प्रत्येकशरीरका असंयतसम्यग्दृष्टियोंमें खोदयपरोदय बन्ध होता है, क्योंकि, नरकगतिमें अपर्याप्त असंयतसम्यग्दृष्टियों में भी इनका बन्ध पाया जाता है। त्रस, वादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर और पंचेन्द्रियजातिका मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें खेदय परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण और विकलेन्द्रियों में इनका बन्ध पाया जाता है। सब प्रकृतियोंके बन्धके स्वामी देव नहीं है,
गोंकि, उनमें नपुंसकवदके उदयका अभाव है। एकेन्द्रिय, आताप और स्थावरके तिर्यग्गति व मनुष्यगतिके मिथ्यादृष्टि ही स्वामी हैं, देव नहीं हैं; क्योंकि, उनमें नपुंसकवेदके उदयका अभाव है । अन्य भी यदि भेद है तो उसको स्मरणकर कहना चाहिये।
जिस प्रकार स्त्रीवेदकी प्ररूपणा की गई है उसी प्रकार पुरुषवेदकी भी करना चाहिये । विशेष इतना है कि ओघप्रत्ययोंमेंसे स्त्रीवेद और नपुंसकवेद प्रत्ययोंको ही सब गुणस्थानों में कम करना चाहिये, क्योंकि, शेष सब प्रत्ययोंकी वहां सम्भावना है । स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका बन्ध परोदय होता है । पुरुषवेदका स्वोदय बन्ध होता है। उपघात, परघात, उच्छ्वास और प्रत्येकशरीरका असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें स्वोदय-परोदय बन्ध होता है । तीर्थकर प्रकृतिकी प्ररूपणा ओघके समान है । इसी प्रकार अन्य भी यदि भेद है तो उसको स्मरण कर कहना चाहिये।
१ अप्रतौ — एइंदिये अण्णो' इति पाठः । २. प्रसिद्ध सासंमरियमबतौ :सप समाछिय पति पाठः ।
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