Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२१२] छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[३, १६९. णत्थि, विग्गहगदीए वट्टमाणणेरइयअसंजदसम्मादिट्ठीसु वेउब्वियचउक्कस्स बंधाभावादो । तित्थयरस्स पुण ते चेव तेत्तीस पच्चया, तत्थ णसयवेदपच्चयदंसगादो । वेउबियचउक्कस्स देवगइसंजुत्तो, तित्थयरस्स देव-मगुसगइसंजुत्तो बंधो । वेउब्बियच उक्कबंधस्स तिरिक्खमणुसअसंजदसम्मादिट्ठी सामी । तित्थयरस्स तिगइअसंजदसम्मादिट्ठी सामी, तिरिक्खगइअसजदसम्मादिट्ठीसु तित्थयरबंधाभावादो । बंधद्धाणं बंधवोच्छेदट्ठाणं च सुगमं ।। एदासिं बंधी सादि-अद्धवो, धुवबंधित्ताभावादो । . वेदाणुवादेण इत्थिवेद-पुरिसवेद-णqसयवेदएसु पंचणाणावरणीयचउदंसणावरणीय-सादावेदणीय-चदुसंजलण-पुरिसवेद-जसकित्ति-उच्चागोद-पंचंतराइयाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ १६९ ॥
सुगम ।
मिच्छाइटिप्पहुडि जाव अणियट्टिउवसमा खवा बंधा । एदे बंधा, अबंधा णत्थि ॥ १७०॥
विग्रहगात में वर्तमान नारकी असंयतसम्यग्दृष्टियों में वैक्रियिकचतुष्कके बन्धका अभाव है। किन्तु तीर्थकर प्रकृतिके वे ही तेतीस प्रत्यय है, क्योंकि, उनमें नपुंसकवेद प्रत्यय देखा जाता है। वैक्रियिकचतुष्कका देवगतिसे संयुक्त और तीर्थकर प्रकृतिका देव एवं मनुष्य गतिसे संयुक्त बन्ध होता है। वैक्रियिकचतुष्कके बन्धके तिर्यंच व मनुष्य असंयतसम्यग्दृष्टि खामी हैं । तीर्थकर प्रकृतिके तीन गतियोंके असंयतसम्यग्दृष्टि स्वामी हैं, क्योंकि, तिर्यग्गतिके असंयतसम्यग्दृष्टियोंमें तीर्थकरके बन्धका अभाव है। वन्धाध्वान और बन्धव्युच्छित्तिस्थान सुगम हैं । इनका बन्ध सादि और अध्रुव होता है, क्योंकि, वे ध्रुवबन्धी नहीं हैं।
वेदमार्गणानुसार स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी और नपुंसकवेदियोंमें पांच ज्ञानावरणीय, चार दर्शनावरणीय, सातावेदनीय, चार संज्वलन, पुरुषवेद, यशकीर्ति, उच्चगोत्र और पांच अन्तराय, इनका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥१६९ ॥
यह सूत्र सुगम है।
मिथ्यादृष्टिसे लेकर अनिवृत्तिकरण उपशमक और क्षपक तक बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, अबन्धक नहीं हैं ॥ १७०॥
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