Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[३, १४८. पुवीणं मणुसगइसंजुत्तो, सेसाणं तिरिक्ख-मणुसगइसंजुत्तो बंधो । तिरिक्ख-मणुसमिच्छाइटिसासणसम्मादिट्टिणो सामी । बंधद्धाणं बंधविणट्ठाणं च सुगमं । थीणगिद्वितिय-अणंताणुबंधिचउक्काणं मिच्छाइट्ठिम्हि बंधो चउब्विहो । सासणे दुविहो, अणादि-धुवत्ताभावादो । सेसाणं पयडीणं सुव्वत्थ सादि-अद्धवो ।
सादावेदणीयस्स को बंधो को अबंधो ? ॥ १४८ ॥ सुगमं ।
मिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्टी असंजदसम्माइट्ठी सजोगिकेवली बंधा। एदे बंधा, अबंधा णत्थि ॥ १४९॥
सादावेदणीयस्स बंधादो उदओ पुव्वं पच्छा [वा] वोच्छिण्णो त्ति विचारो णत्थि, चदुसु गुणहाणेसु तदुभयवोच्छेदाणुवलंभादो । मिच्छाइटि-सासणसम्माइट्ठि-असंजदसम्माइट्टि-सजोगीसु बंधो सोदय-परोदओ, परावत्तण्णुदयत्तादो । मिच्छाइट्टि-सासणसम्माइट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठीसु बंधो सांतरो, गममाण बंधुवरमदंसणादो। सजोगीसु णिरंतरो, पडिवक्खपयडीए
तथा शेष प्रकृतियोंका तिर्यग्गति व मनुष्यगतिसे संयुक्त बन्ध होता है। तिर्यंच और मनुष्य मिथ्यादृष्टि एवं सासादनसम्यग्दृष्टि स्वामी हैं। बन्धाध्वान और वन्धविनष्टस्थान सुगम हैं । स्त्यानगृद्धित्रय और अनन्तानुबन्धिचनुष्कका बन्ध मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें चारों प्रकारका होता है। सासादन गुणस्थानमें दो प्रकारका होता है, क्योंकि, वहां अनादि और ध्रुव बन्धका अभाव है। शेष प्रकृतियोंका बन्ध सर्वत्र सादि और अध्रुव होता है।
साता वेदनीयका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ १४८ ॥
यह सूत्र सुगम है। - मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि और सयोगकेवली बन्धक हैं । ये बन्धक है, अबन्धक नहीं है ॥ १४९ ॥
साता वेदनीयका उदय वन्धसे पूर्व में या पश्चात् ब्युच्छिन्न होता है, यह विचार नहीं है, क्योंकि, चारों गुणस्थानोंमें उन दोनोंका व्युच्छेद पाया नहीं जाता। मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि और सयोगकेवली गुणस्थानोंमें स्वोदय-परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, यहां परिवर्तित होकर अन्यका भी उदय होता है। मिथ्यादृाष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानों में साता वेदनीयका सान्तर वन्ध होता है, क्योंकि एक समयसे यहां उसका वन्धविश्राम देखा जाता है। सयोगकेवलियोंमें निरन्तर
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