Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३, १३८.]
तेउ बाउकाइएसु बंधसामित्तं पज्जत्तापज्जत्ताणं वणप्फदिकाइयभंगो । णवरि पत्तयसरीरस्स परोदओ सांतरा बंधो । तसबादर पज्जत्त-परघादुस्सासाणं बंधो सांतरो। साहारणसरीरस्स सोदय-परोदओ। बादरवणप्फदिकाइयपत्तयसरीरपज्जत्तापज्जत्ताणं पि एवं चेव वत्तव्यं । णवरि साहारणसरीरस्स परोदओ बंधो, पत्तेयसरीरस्स सोदय-परोदओ बंधो ।
तेउकाइय-वाउकाइय-बादर सुहुम-पजत्तापजाणं सो चेव भंगो। णवरि विसेसो मणुस्साउ-मणुसगइ-मणुसगइपाओग्गाणुपुवी-उच्चागोदं णत्थि ॥१३८ ॥
एदमप्पणासुत्तं देसामासिय, तेणेदेण सूइदत्यपरूवणा कीरदे- परघादुस्सास-बादरपज्जत्त-पत्तेयसरीराणं सांतरो बंधो, देवाणं तेउ-वाउकाइएसु उववादाभावादो । तिरक्खगइतिरिक्खाणुपुव्वी-णीचागोदाणं णिरंतरो बंधो सोदओ चेव । णवरि तिरिक्खाणुपुबीए बंधो सोदय-परोदओ। आदाउज्जोवाणं परोदओ बंधो । होदु णाम वाउकाइएसु आदावुज्जीवाण
उसके वादर सूक्ष्म पर्याप्त व अपर्याप्तोंकी प्ररूपणा वनस्पतिकायिकोंके समान है । विशेष यह है कि प्रत्येकशरीरका परोदय व सान्तर वन्ध होता है। प्रस, बादर, पर्याप्त, परघात और उच्छ्वासका सान्तर वन्ध होता है। साधारणशरीरका स्वोदय परोदय बन्ध होता है। बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त व अपर्याप्तोंके भी इसी प्रकार ही कहना चाहिये । विशेषता यह है कि साधारणशरीरका परोदय बन्ध होता है । प्रत्येकशरीरका स्वोदय-परोदय बन्ध होता है ।
तेजकायिक और वाउकायिक बादर सूक्ष्म पर्याप्त व अपर्याप्तोंकी प्ररूपणा भी पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तोंके समान है । विशेषता केवल यह है कि मनुष्यायु, मनुष्यगति, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी और उच्चगोत्र प्रकृतियां इनके नहीं हैं ॥ १३८ ॥
__ यह अर्पणासूत्र देशामर्शक है, इसीलिये इससे सूचित अर्थोकी प्ररूपणा करते हैं- परयात, उच्छ्वास,बादर, पर्याप्त और प्रत्येकशरीरका सान्तर बन्ध होता है, क्योंकि, देवोंकी तेजकायिक ओर वायुकायिक जीवों में उत्पत्ति नहीं होती । तिर्यग्गति, तिर्यगानुपूर्वी और नीचगोत्रका बन्ध निरन्तर व स्वोदय ही होता है। विशेषता यह है कि तिर्यगानुपूर्वीका बन्ध खोदय-परोदय होता है। आताप और उद्योतका परोदय बन्ध होता है।
शंका-वायु कायिक जीवोंमें आताप और उद्योतका अभाव भले ही हो, क्योंकि,
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