Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३, १३७.] पुढविकाइयादिसु बंधसामित्त
[१९३ पंचणाणावरणीय चउदंसणावरणीय - मिच्छत्त-णउंसयवेद-तिरिक्खाउ-तिरिक्खगइएइंदियजादि-तेजा-कम्मइयसरीर-वण्ण-गंध-रस-फास-अगुरुअलहुअ-थावर-थिराथिर-सुहासुहदुभग-अणादेज्ज-णिमिण-णीचागाद-पंचतराइयाणं सोदओ बंधो, एत्थ एदासिं धुवोदयत्तादो । इत्थि-पुरिसवेद-मणुस्साउ-मणुस्सगइ-बीइंदिय-तीइंदिय-चउंरिदिय-पंचिंदियजादि-पंचसंठाणओरालियसरीरअंगोवंग-छसंघडण-मणुसगइपाओग्गाणुपुब्बी-साहारण-दोविहायगइ-तस-सुभगसुस्सर-दुस्सर-आदेज्जुच्चागोदाणं परोदओ बंधो, एदासिमेत्थ उदयविरोहादो । पंचदंसणावरणीय-सादासाद-सोलसकसाय-छणोकसाय-बादर-सुहुम-पज्जत्तापज्जत्त-जसकित्ति-अजसकित्तीणं सोदय परोदओ बंधो, अद्धवोदयत्तादो। ओरालियसरीर-हुंडसंठाण-उवघाद-पत्तेयसरीर-आदावुज्जोवाणं पि सोदय-परोदओ, विग्गहगदीए उदयाभावादो अद्धवोदयत्तादो च । परघादुस्सासाणं पि सोदय-परोदओ बंधो, एदासिमुदयाणुदयसहिदपज्जत्तापज्जत्तद्धासु बंधदसणादो । तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुवीए सोदय-परोदओ बंधो, सोदयाणुदयविग्गहाविग्गहगदीसु बंधुवलंभादो।
पंचणाणावरणीय-णवदंसणावरणीय-मिच्छत्त-सोलसकसाय-भय-दुगुंछा-तिरिक्ख-मणु
पांच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, मिथ्यात्व, नपुंसकवेद, तिर्यगायु, तिर्यग्गति, एकेन्द्रिय जाति, तैजस व कार्मण शरीर, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, स्थावर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, दुर्भग, अनादेय, निर्माण, नीचगोत्र और पांच अन्तराय, इनका स्वोदय बन्ध होता है, क्योंकि, यहां ये प्रकृतियां ध्रुवोदयी हैं। स्त्रीवेद, पुरुषवेद, मनुष्यायु, मनुष्यगति, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय जाति, पांच संस्थान, औदारिकशरीरांगोपांग, छह संहनन, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, साधारणशरीर, दो विहायोगतियां, त्रस, सुभग, सुस्वर, दुस्वर, आदेय और उच्चगोत्र, इनका परोदयसे वन्ध होता है, क्योंकि, यहां इनके उदयका विरोध है । पांच दर्शनावरणीय, साता व असाता वेदनीय, सोलह कषाय, छह नोकषाय, बादर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, यशकीर्ति और अयशकीर्तिका स्वोदय-परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, ये अध्रुवोदयी हैं । औदारिकशरीर, हुण्डसंस्थान उपघात, प्रत्येकशरीर, आताप, और उद्योतका भी स्वोदय-परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, विग्रहगतिमें इनके उदयका अभाव है, तथा ये अध्रुवोदयी भी हैं। परघात और उच्छ्वासका भी स्वोदय-परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, क्रमशः इनके उदय और अनुदय सहित पर्याप्त व अपर्याप्त कालोंमें उनका बन्ध देखा जाता है । तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वीका स्वोदय परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, क्रमशः अपने उदय व अनुदय सहित विग्रह व अविग्रह गतियों में उसका बन्ध पाया जाता है।
___पांच ज्ञानावरणीय, नौ दर्शनावरणीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा, छ.बं. २५.
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