Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१९२]
छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ एदं पि सुगमं ।
कायाणुवादेण पुढविकाइय-आउकाइय-वणफदिकाइय-णिगोदजीव-बादर-सुहुम पज्जत्तापज्जत्ताणं बादरवणप्फदिकाइयपत्तेयसरीरपज्जत्तापज्जत्ताणं च पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तभंगो ॥ १३७ ॥
___ एदमप्पणासुत्तं देसामासियं, तेणेदेण सूइदत्थाणं परूवणा कीरदे -- तत्थ ताव पुढविकाइयाणं भण्णमाणे पंचणाणावरणीय-णवदंसणावरणीय-सादासाद-मिच्छत्त-सोलसकसायणवणोकसाय-तिरिक्खाउ-मणुस्साउ-तिरिक्खगइ-मणुस्सगइ-एइंदिय-बीइंदिय-तीइंदिय-चउरिंदिय-पंचिंदियजादि-ओरालिय-तेजा - कम्मइयसरीर-छसंठाण-ओरालियसरीरअंगोवंग-छसंघडणवण्ण-गंध-रस-फास-तिरिक्खगइ-मणुसगइपाओग्गाणुपुवी-अगुरुवलहुव-उवघाद-परघाद-उस्सासआदावुनोव-दोविहायगइ-तस-थावर-बादर-सुहुम-पज्जत्त-अपज्जत्त-पत्तेय-साहारणसरीर-थिराथिरसुहासुह-सुभग-[ दुभग-] सुस्सर-दुस्सर-आदेज्ज-अणादेज्ज-जसकित्ति-अजसकित्ति-णिमिणणीचुच्चागोद-पंचतराइयपयडीओ पुढविकाइएहि बज्झमाणाओ ठवेदव्वा । एत्थ बंधोदयवोच्छेदविचारो णत्थि, तदुभयवोच्छेदाभावादो ।
यह सूत्र भी सुगम है।
कायमार्गणानुसार पृथिवीकायिक, अप्कायिक, वनस्पतिकायिक और निगोद जीव बादर सूक्ष्म पर्याप्त अपर्याप्त तथा बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त अपर्याप्त जीवोंकी परूपणा पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तोंके समान है ॥ १३७ ॥
यह अर्पणासूत्र देशामर्शक है, अत एव इससे सूचित अर्थोकी प्ररूपणा करते हैं-उनमें पहले पृथिवीकायिक जीवोंकी प्ररूपणा करते समय पांच ज्ञानावरणीय, नौ दर्शनावरणीय, साता व असाता वेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नौ नोकषाय,
, मनुष्यायु, तिर्यग्गति, मनुष्यगति, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचन्द्रिय जाति, औदारिक, तैजस व कार्मण शरीर, छह संस्थान, औदारिकशरीरांगोपांग, छह संहनन, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, तिर्यग्गति व मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, आताप, उद्योत, दो विहायोगतियां, त्रस, स्थावर, बादर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येकशरीर, साधारणशरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, [दुर्भग,] सुखर, दुखर, आदेय, अनादेय, यशकीर्ति, अयशकीर्ति, निर्माण, नीचगोत्र, ऊंचगोत्र और पांच अन्तराय प्रकृतियां पृथिवीकायिक जीवों द्वारा बध्यमान स्थापित करना चाहिये । यहां बन्ध और उदयके व्युच्छेदका विचार नहीं है, क्योंकि, दोनोंके व्युच्छेदका यहां अभाव है।
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