Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१७८] छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[३, ११०. सुगमं ।
मिच्छाइटिप्पहुडि जाव सजोगिकेवली बंधा । सजोगिकेवलिअदाए चरिमसमयं गंतूण बंधों वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ ११० ॥
एदस्स अत्थो उच्चदे- बंधो पुव्वं पच्छा उदओ वोच्छिण्णो, सजोगिकेवलिअजोगिकेवलीसु जहाकमेण बंधोदयवोच्छेददंसणादो । सोदय-परोदएण बंधो, सव्वगुणट्ठाणेसु अद्धवोदयत्तादो। मिच्छाइटिप्पहुडि जाव पमत्तसंजदो त्ति सांतरो बंधो, एगसमएण बंधुवरमदंसणादो । उवरि णिरंतरो, पडिवक्खपयडीए बंधाभावादो। पच्चया सव्वगुणट्ठाणेसु ओघपच्चयतुल्ला । मिच्छाइटि-सासणसम्मादिट्ठिणो तिगइसंजुत्तं, णिरयगईए सह सादबंधाभावादो । सेसं सव्वमोघतुल्लं।
असादावेदणीय-अरदि-सोग-अथिर-असुह-अजसकित्तिणामाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ ११ ॥
यह सूत्र सुगम है।
मिथ्यादृष्टिसे लेकर सयोगकेवली तक बन्धक हैं। सयोगकेवलिकालके अन्तिम समयको जाकर बन्धव्युच्छेद होता है । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ ११० ॥
इस सूत्रका अर्थ कहते हैं- सातावेदनीयका बन्ध पूर्वमें और उदय पश्चात् व्युच्छिन्न होता है, क्योंकि, सयोगकेवली और अयोगकेवली गुणस्थानोंमें क्रमसे उसके बन्ध और उदयका व्युच्छेद देखा जाता है। स्वोदय परोदयसे बन्ध होता है, क्योंकि, वह सब गुणस्थानोंमें अध्रुवोदयी है। मिथ्यादृष्टिसे लेकर प्रमत्तसंयत तक सान्तर बन्ध होता है, क्योंकि, यहां एक समयसे उसका बन्धविश्राम देखा जाता है। प्रमत्तसंयतसे ऊपर निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, वहां प्रतिपक्ष प्रकृतिके बन्धका अभाव है। प्रत्यय सब गुणस्थानों में ओघप्रत्ययोंके समान हैं। मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि तीन गतियोंसे संयुक्त बांधते हैं, क्योंकि, नरकगतिके साथ सातावेदनीयका बन्ध नहीं होता। शेष सब प्ररूपणा ओघके समान है।
असातावेदनीय, अरति, शोक, अस्थिर, अशुभ और अयशकीर्ति नामकर्मका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ १११ ॥
१ प्रतिषु — बंधो.' इति पाठः । २ अ-काप्रत्योः बंधा' इति पाठः ।
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