Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, ११४.]
पंचिदिय-पंचिदियपज्जत्तरसु बंधसामित्तं
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मेहावज्जियजणाणुग्गहङ्कं तण्णिद्देसादो । मिच्छत्त - अपज्जत्ताणं बंधोदया समं वोच्छिज्जंति, मिच्छाइट्ठिम्हि चेव तदुभयवोच्छेददंसणादो । एइंदिय - बीइंदिय - तीइंदिय - चउरिदिंयजादिआदाव - थावर-सुहुम-साहारणाणमेस विचारो णत्थि, पंचिंदिएसु तेसिमुदयाभावाद । णवरि पंचिंदियपज्जत्तएस अपज्जत्तस्स वि एसो विचारो णत्थि त्ति वत्तव्वं । णवुंसयवेदस्स पुब्वं बंधो पच्छा उदओ वोच्छिज्जदि, मिच्छाइट्टि - अणियट्टिगुणेसु' बंधोदयवोच्छेददंसणादो | एवं णिरयाउ - निरयगइ - णिरयाणुपुव्वीणं वत्तव्वं, मिच्छादिष्ट्ठि-असंजदसमादिट्ठीसु बंधोदयवोच्छेददंसणादो | एवं हुंडठाणस्स वत्तव्वं, मिच्छाइट्टि - सजेोगिकेवलीसु बंधोदयवोच्छेददंसणादो ! एवमसंपत्तसेवट्टसंघडणस्स वि वत्तव्वं, मिच्छाइड - अप्पमत्तेसु बंधोदयवोच्छेदुवलंभादो ।
मिच्छत्तस्स सोदएण बंधो, धुवोदयत्तादों । णवुंसयवेद - अपज्जत्ताणं सोदय-परोदओ, अद्भुवोदयत्तादो। णवरि पंचिंदियपज्जत्तएस अपज्जत्तस्स परोदओ बंधो, तत्थ तदुदयाभावादो ।
अनुग्रह के लिये वह निर्देश किया गया है ।
मिथ्यात्व और अपर्याप्तका बन्ध व उदय दोनों एक साथ व्युच्छिन्न होते हैं, क्योंकि, मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें ही उन दोनों का व्युच्छेद देखा जाता है । एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जाति आताप, स्थावर, सूक्ष्म और साधारण, इन प्रकृतियोंके यह विचार नहीं है, क्योंकि, पंचेन्द्रिय जीवोंमें उनके उदयका अभाव है । विशेष इतना है कि पंचेन्द्रिय पर्याप्तकों में अपर्याप्त प्रकृतिके भी यह विचार नहीं हैं, ऐसा कहना चाहिये । नपुंसकवेदका पूर्वमें बन्ध और पश्चात् उदय व्युच्छिन्न होता है, क्योंकि, मिध्यादृष्टि और अनिवृत्तिकरण गुणस्थानोंमें क्रमशः उसके बन्ध और उदयका व्युच्छेद देखा जाता है । इसी प्रकार नारकायु, नरकगति और नरकानुपूर्वीके कहना चाहिये, क्योंकि, मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानों में क्रमसे इनके बन्ध और उदयका व्युच्छेद देखा जाता है। इसी प्रकार हुण्डसंस्थान के भी कहना चाहिये, क्योंकि, मिथ्यादृष्टि और सयोगकेवली गुणस्थानोंमें इसके बन्ध व उदयका व्युच्छेद देखा जाता है । इसी प्रकार असंप्राप्तसृपाटिका संहननके भी कहना चाहिये, क्योंकि, मिथ्यादृष्टि और अप्रमत्त गुणस्थानों में इसके बन्ध व उदयका व्युच्छेद पाया जाता है ।
मिध्यात्वका स्वोदय से बन्ध होता है, क्योंकि वह भ्रुवोदयी है । नपुंसकवेद और अपर्याप्तका स्वोदय-परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, वे अभ्रुवोदयी हैं। विशेष इतना है कि पंचेन्द्रिय पर्याप्तकोंमें अपर्याप्तका परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, उनमें अपर्याप्तके
१ आमतौ‘- अणियट्टिगुणट्टाणेसु ' इति पाठः । २ अ आपत्योः ' धुवोदयादो' इति पाठः ।
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