Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३, १०६.] पंचिंदिय-पंचिंदियपज्जत्तएसु बंधसामित्तं
[१७५ एदस्स अत्थो वुच्चदे-थीणगिद्धितियस्स पुव्वं बंधो पच्छा उदओ वोच्छिज्जदि, सासणसम्माइट्ठि-पमत्तसंजदेसु जहासंखाए बंधोदयवोच्छेददंसणादो । अणंताणुबंधिचउक्कस्स दो वि समं वोच्छिज्जंति, सासणे तदुभयाभावदसणादो। इत्थिवेदस्स पुव्वं बंधो पच्छा उदओ वोच्छिज्जदि, सासणाणियट्ठीसु जहासंखाए बंधोदयवोच्छेदुवलंभादो । तिरिक्खाउतिरिक्खगइ-उज्जोवणीचागोदाणं पुव्वं बंधो पच्छा उदओ वोच्छिज्जदि, सासणसम्मादिहिसजदासजदेसु तेसिं दोण्णं वोच्छेदुवलंभादो । चउसंठाणाणं पुव्वं बंधो पच्छा उदओ वोच्छिज्जदि, सासण-सजोगीसु तेसिं दोण्णं वोच्छेदुवलंभादो । एवं चदुसंघडणाणं पि वत्तव्वं, सासणे फिटबंधाणमप्पमत्तुवसंतकसाएसु पढम-बिदियसंघडणदुगोदयवोच्छेददंसणादो। एवं तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुवी-दुभग-अणादेज्जाणं वत्तव्वं सासण-असंजदसम्मादिट्ठीसु बंधोदयवोच्छेददंसणादो । एवमप्पसत्थविहायगइ-दुस्सराणं वत्तव्वं, सासण-सजोगीसु बंधोदयवोच्छेददंसणादो।
__इस सूत्रका अर्थ कहते हैं- स्त्यानगृद्धित्रयका पूर्वमें बन्ध और पश्चात् उदय व्युच्छिन्न होता है, क्योंकि, सासादनसम्यग्दृष्टि और प्रमत्तसंयत गुणस्थानमें यथाक्रमसे इनके वन्ध व उदयका व्युच्छेद देखा जाता है । अनन्तानुबन्धिचतुष्कका बन्ध और उदय दोनों एक साथ व्युच्छिन्न होते हैं, क्योंकि, सासादन गुणस्थानमें उन दोनोंका अभाव देखा जाता है । स्त्रीवेदका पूर्वमें वन्ध और पश्चात् उदय व्युच्छिन्न होता है, क्योंकि, 'सासादन और अनिवृत्तिकरण गुणस्थानोंमें यथाक्रमसे उसके बन्ध व उदयका व्युच्छेद पाया जाता है। तिर्यगायु, तिर्यग्गति, उद्योत और नीचगोत्र, इनका पूर्वमें बन्ध और पश्चात् उदय व्युच्छिन्न होता है, क्योंकि, सासादनसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत गुणस्थानों में क्रमशः उन दोनोंका व्युच्छेद पाया जाता है। चार संस्थानोंका पूर्वमें बन्ध और पश्चात् उदय व्युच्छिन्न होता है, क्योंकि, सासादन और सयोगकेवली गुणस्थानोंमें उन दोनोंका व्युच्छेद पाया जाता है । इसी प्रकार चार संहननोंके भी पूर्व पश्चात् बन्धोदयव्युच्छेदको कहना चाहिये, क्योंकि, सासादन गुणस्थान में बन्धके नष्ट हो जानेपर अप्रमत्त व उपशान्तकषाय गुणस्थानोंमें क्रमसे उक्त चार संहननोंके प्रथम व द्वितीय युगलके उदयका व्युच्छेद देखा जाता है। इसी प्रकार तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी, दुर्भग और अनादेयके भी कहना चाहिये, क्योंकि, सासादन व असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानों में क्रमशः इनके बन्ध व उदयका व्युच्छेद देखा जाता है । इसी प्रकार अप्रशस्तविहायोगति
और दुस्वरके भी कहना चाहिये, क्योंकि, सासादन और सयोगकेवली गुणस्थानों में इनके बन्ध व उदयका व्युच्छेद देखा जाता है ।
१ प्रतिषु तदुभयभाव-' इति पाठः।
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