Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३, १०४.1 पंचिंदिय-पंचिंदियपज्जत्तएसु बंधसामित्तं पच्छा उदओ वोच्छिज्जदि, सुहुमसांपराइयचरिमसमयम्हि णट्टबंधाणमेदासिं खीणकसायचरिमसमयम्मि उदयवोच्छेदुवलंभादो। जसकित्तीए उच्चागोदस्स य पुव्वं बंधो पच्छा उदओ वोच्छिज्जदि, सुहुमसांपराइयचरिमसमयम्मि णट्टबंधाणं अजोगिचरिमसमयम्मि उदयवोच्छेदुवलंभादो।
पंचणाणावरणीय-चउदंसणावरणीय-पंचंतराइयाणं सोदओ बंधो। जसकित्तीए मिच्छाइटिप्पहुडि जाव असंजदसम्माइट्ठि त्ति सोदय-परोदएण बंधो, एदेसु अजसकित्तीए वि उदयदंसणादो । उवरि सोदएणेव, पडिवक्खुदयाभावादो । मिच्छाइटिप्पहुडि जाव संजदासंजदो [त्ति] उच्चागोदस्स सोदय परोदएण बंधो, एदेसु णीचागोदस्स वि उदयदंसणादो । उवरि सोदओ, पडिवक्खुदयाभावादो ।
पंचणाणावरणीय-चउदंसणावरणीय-पंचंतराइयाणं णिरंतरो बंधो, सव्वगुणट्ठाणेसु वि एगसमएण बंधवोच्छेदाभावादो । जसकित्तीए सांतर-णिरंतरो बंधो, मिच्छाइट्टिप्पहुडि जाव पमत्तसंजदो त्ति सांतरो बंघो, एदेसु पविक्खपयडिबंधदंसणादो; उवरि णिरंतरो, पडिवक्ख
अन्तरायका पूर्व में बन्ध और पश्चात् उदय व्युच्छिन्न होता है, क्योंकि, सूक्ष्मसाम्परायिक गुणस्थानके अन्तिम समयमें बन्धके नष्ट हो जानेपर क्षीणकषाय गुणस्थानके अन्तिम समयमें उनका उदयव्युच्छेद पाया जाता है। यशकीर्ति और उच्चगोत्रका पूर्वमें बन्ध और पश्चात् उदय व्युच्छिन्न होता है, क्योंकि, सूक्ष्मसाम्परायिक गुणस्थानके अन्तिम समयमें बन्धके नष्ट हो जानेपर अयोगिकेवलीके अन्तिम समयमें इनका उदयव्युच्छेद पाया जाता है।
पांच ज्ञानावरणीय, चार दर्शनावरणीय और पांच अन्तरायका स्वोदय बन्ध होता है । यशकीर्तिका मिथ्यादृष्टिसे लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि तक स्वोदय-परोदयसे बन्ध होता है, क्योंकि, इन गुणस्थानोंमें अयशकीर्तिका भी उदय देखा जाता है। ऊपर इसका स्वोदयसे ही बन्ध होता है, क्योंकि, वहां अयशकीर्तिके उदयका अभाव है। मिथ्यादृष्टिसे लेकर संयतासंयत तक उच्चगोत्रका स्वोदय-परोदयसे बन्ध होता है, क्योंकि, इन गुणस्थानों में नीचगोत्रका भी उदय देखा जाता है । उपरिम गुणस्थानोंमें उसका स्वोदयसे बन्ध होता है, क्योकि, वहां नीचगोत्रके उदयका अभाव है।
___ पांच शानावरणीय, चार दर्शनावरणीय और पांच अन्तरायका निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, सब गुणस्थानोंमें ही एक समयसे इनके बन्धव्युच्छेदका अभाव है। यशकीर्तिका सान्तर-निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, मिथ्याष्टिसे लेकर प्रमत्तसंयत तक इनमें प्रतिपक्ष प्रकृतिका बन्ध देखे जानेसे सान्तर बन्ध होता है और इससे ऊपर
१ अप्रतौ । समयम्मि गट्ठबंधाणं उदय-' इति पाठः ।
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