Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३, २३. ]
ओघेण माण - मायासंजलणाणं बंधसामित्तपरूवणा
[ ५५
देवगइसंजुत्तं, सेसगईणं तत्थ बंधाभावादो । अपुव्वकरणसत्तमसत्तभागप्पडुडि उवरिमा अगदि संजुत्तं बंधति, तत्थ गइकम्मस्स बंधाभावादो | एवं कोधसंजलणस्स वि वत्तव्वं । णवरि मिच्छाइट्ठी चउगइसंजुत्तं बंधइ, तत्थ णिरयगईए सह बंधविरोहाभावादो । पुरिसवेदबंधस्स चउगइमिच्छाइट्टि-सासणसम्माइडि-सम्मामिच्छाइट्ठि असंजदसम्मादिट्टिणो सामी । दुगसंजदासंज़दा सामी, देव-णिरयगईसु तदभावाद । उवरिमा मणुसगईए सामी, अण्णत्थ पमत्तादीणमभावादो । पुरिमवेदबंधो सव्वगुणणेसु सादिगो अद्भुवो, पडिवक्खपयडीणं बंधुवलंभादो । णियमेण सम्मामिच्छाइडिप्पहुड उवरिमेसु बंधविणासदंसणा दो । कोधसंजणस्स मिच्छाडिदि वो बंध, धुवबंधित्तादो । उवरिमेसु तिविहो, धुवत्ताभावादो ।
माण- मायसंजलणाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ २३ ॥
सुगममेदं ।
देवगति से संयुक्त बांधते हैं, क्योंकि, वहां शेष गतियोंका बन्ध नहीं होता । अपूर्वकरणके सातवें सप्तम भागसे लेकर उपरिम जीव अगतिसंयुक्त पुरुषवेदको बांधते हैं, क्योंकि, वहां गतिकर्मका बन्ध नहीं होता । इसी प्रकार संज्वलनक्रोधके भी कहना चाहिये । विशेष इतना है कि मिध्यादृष्टि उसे चार गतियोंसे संयुक्त बांधता है, क्योंकि, वहां नरकगतिके साथ उसके बन्ध होने में कोई विरोध नहीं है ।
पुरुषवेदके बन्धके चारों गतियोंवाले मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यमिथ्याष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि स्वामी हैं । दो गतियोंवाले संयतासंयत स्वामी हैं, क्योंकि, देव व नरक गतिमें संयतासंयतोंका अभाव है । ऊपरके जीव मनुष्यगतिके ही स्वामी हैं, क्योंकि, दूसरी गतियों में प्रमत्तसंयतादिकों का अभाव है । पुरुषवेदका बन्ध सब गुणस्थानों में सादिक व अध्रुव है, क्योंकि, वहां प्रतिपक्ष प्रकृतियोंका बन्ध पाया जाता है, नियम से सम्यग्मिथ्यादृष्टिसे लेकर उपरिम गुणस्थानों में प्रतिपक्ष प्रकृतियोंका बन्धविनाश देखा जाता है । संज्वलनक्रोधका मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें चारों प्रकारका बन्ध होता है, क्योंकि, वह ध्रुवबन्धी है । उपरिम गुणस्थानोंमें तीन प्रकारका बन्ध होता है, क्योंकि, वहां ध्रुव बन्धका अभाव है ।
संज्वलन मान और मायाका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ २३ ॥
यह सूत्र सुगम है ।
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