Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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६२ छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[३, ३०. परोदएण, किं सांतरं किं णिरंतरं किं सांतर-णिरंतरं, किं पच्चएहि किं तेहि विणा, किं गइसंजुत्तं किमगइसंजुत्तं बज्झइ, एदस्स बंधस्स कदिगदिया सामी असामी वा, किं बंधद्धाण, किं चरिमसमए बंधो वोच्छिजदि किं पढमसमए किमपढम-अचरिमसमए बंधेो वोच्छिज्जदि, किं सादिओ किमणादिओ किं धुवो किमद्धवो बंधो त्ति एदाओ पुच्छाओ एत्थ कायवाओ । पुणो पुच्छिदजणाणुग्गहढे उत्तरसुत्तं भणदि
मिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी असंजदसम्माइट्ठी बंधा। एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ ३० ॥
एत्थ बंधद्धाणं गुणहाणाणि अस्सिदूण बंधसामित्तं च उत्तं, तेण इदरत्थाणं परूवणा कीरदे । तं जहा- मसुस्साउअस्स पुव् बंधो वोच्छिज्जदि पच्छा उदओ, असंजदसम्मादिट्ठिम्हि णट्ठबंधस्स मणुसाउअस्स अजोगिचरिमसमए उदयवोच्छेदुवलंभादो । मिच्छाइट्ठिसासणसम्मादिट्ठिणो सोदएण परोदएण वि मणुसाउअं बंधति, अविरोहादो । असंजदसम्मादिट्ठी परोदएणेव, सोदएण सह तत्थ बंधविरोहादो। णिरंतरो बंधो, वज्झमाणभवे पडिवक्खपयडीए
बन्ध सान्तर,क्या निरन्तर, या क्या सान्तर-निरन्तर है; क्या प्रत्ययोंसे या क्या उनके विना ही बन्ध होता है, क्या गतिसंयुक्त याक्या अगतिसंयुक्त बन्ध होता है, इसके बन्धके कितनी गतियोवाले स्वामी अथवा अस्वामी हैं, बन्धाध्वान क्या है, क्या चरम समयमें बन्ध व्युछिन्न होता है, क्या प्रथम समयमें, या क्या अप्रथम-अचरम समयमें बन्ध व्युच्छिन्न होता है; क्या सादिक, क्या अनादिक, क्या ध्रुव या क्या अध्रुव बन्ध होता है; इन प्रश्नों को यहां करना चाहिये । फिरसे पृच्छायुक्त जनोंके अनुग्रहके लिये उत्तर सूत्र कहते हैं
मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि बन्धक हैं। ये बन्धक हैं, शेष जीव अबन्धक हैं ॥ ३० ॥
इस सूत्रमें बन्धाध्वान और गुणस्थानोंका आश्रयकर बन्धस्वामित्व ही कहा गया है, इसलिये अन्य अर्थोकी प्ररूपणा करते हैं । वह इस प्रकार है-- मनुष्यायुका पूर्वमें बन्ध व्युच्छिन्न होता है पश्चात् उदय, क्योंकि, असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें मनुष्यायुके बन्धके व्युच्छिन्न होजानेपर अयोगकेवलीके अन्तिम समयमें उदयका व्युच्छेद पाया जाता है। मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि स्वोदय और परोदयसे भी मनुष्यायुको बांधते हैं, क्योंकि, इसमें कोई विरोध नहीं है। असंयतसम्यग्दृष्टि परोदयसे ही मनुष्यायुको बांधते हैं, क्योंकि, स्वोदयके साथ वन्ध होनेका इस गुणस्थानमें विरोध है । इसका बन्ध निरन्तर है, क्योंकि, बध्यमान भवमें प्रतिपक्ष प्रकृतिके बन्धके विना इसके बन्धकी
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