Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[३, ९६. चउव्विहो, धुवबंधित्तादो । सेसाणं सादि-अद्भुवो, अद्भुवबंधित्तादो ।
मणुस्साउअस्स को बंधो को अबंधो ? ॥ ९६ ॥ सुगम।
मिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी असंजदसम्माइट्टी बंधा। एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ ९७ ॥
एदस्स अत्था-बंधोदयाणं वोच्छेदपरिक्खा एत्थ णत्थि, उदयाभावादो । परोदएण बज्झइ, बंधेणुदयस्स एत्थ अवट्ठाणविरोहादो । णिरंतरो बंधो, एगसमएण बंधुवरमाभावादो । मिच्छाइट्ठिस्स एगूणवंचास, सासणस्स चउएत्तालीस, असंजदसम्मादिहिस्स चालीस पच्चया । मणुसगइसंजुत्तं । देवा सामी । बंधद्धाणं बंधविणट्ठट्ठाणं च सुगमं । सादि-अद्धवो बंधो, अद्धवबंधित्तादो।
तित्थयरणामकम्मस्स को बंधो को अबंधो ? ॥ ९८ ॥ सुगमं ।
ध्रुवबन्धी है। शेष प्रकृतियोंका सादि व अध्रुव बन्ध होता है, क्योंकि, वे अध्रुवबन्धी हैं।
मनुष्यायुका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ ९६ ॥ यह सूत्र सुगम है।
मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष देव अबन्धक हैं ॥ ९७ ॥
इसका अर्थ- बन्ध और उदयके व्युच्छेदकी परीक्षा यहां नहीं है, क्योंकि, मनुष्यायुके उदयका देवोंमें अभाव है । वह परोदयसे बंधती है, क्योंकि, यहां उसके बन्धके साथ उदयके अवस्थानका विरोध है। निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, एक समयसे उसके बन्धविश्रामका अभाव है। मिथ्याष्टिके उनचास, सासादनसम्यग्दृष्टिके चवालीस और असंयतसम्यग्दृष्टिके चालीस प्रत्यय होते हैं। मनुष्यगतिसे संयुक्त बन्ध होता है । देव स्वामी हैं । बन्धाध्वान और वन्धविनष्टस्थान सुगम हैं । सादि व अध्रुव बन्ध होता है, क्योंकि, वह अध्रुवबन्धी प्रकृति है।
तीर्थकर नामकर्मका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥९८॥ यह सूत्र सुगम है।
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