Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३, १०२.] एइंदिएसु बंधसामित्तं
[१६१ पाओग्गाणुपुवी-आदावुज्जोव-दोविहायगइ-तस-थावर-सुहुम-अपज्जत्त-साहारणसरीर-थिराथिरसुभासुभ-सुभग-दुभग-सुस्सर-दुस्सर-आदेज्ज-अणादेज्ज-जसकित्ति-अजसकित्ति-उच्चागोदाणं सांतरो बंधो, एगसमएण बंधुवरमदसणादो । तिरिक्खगइ-तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुव्वीणीचागोदाणं सांतर-णिरंतरो बंधो, सव्वेईदिएसु सांतरबंधाणमेदासिं तेउ-वाउकाइएसु णिरंतरबंधुवलंभादो । परघादुस्सास-बादर-पज्जत्त-पत्तेयसरीराणं बंधो सांतर-णिरंतरो । कधं णिरंतरं ? एइंदिएसुप्पण्णदेवाणमंतोमुहुत्तकालं णिरंतरबंधदसणादो ।
___ एइंदिएसु मिच्छत्तासंजम-कसाव-जोगभेदेण चत्तारि मूलपच्चया। पंचमिच्छत्तपच्चया । कुदो ? पंचमिच्छत्तेहि सह णाणामणुस्साणमेइंदिएसुप्पण्णाणं पंचमिच्छत्तुवलंभादो। एगो एइंदियासंजमो, छप्पाणासंजमा, कसाया सोलस, इत्थि-पुरिसवेदेहि विणा णोकसाया सत्त,
ओरालियदुग-कम्मइयमिदि तिणि जोगा, एदे सव्वे वि अट्ठत्तीस उत्तरपच्चया । णवीर तिरिक्ख-मणुस्साउआणं कम्मइयपच्चएण विणा सतत्तीस पच्चया । एक्कारस अट्ठारस
शरीरांगोपांग, छह संहनन, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, आताप, उद्योत, दो विहायोगतियां, त्रस, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारणशरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, दुर्भग, सुस्वर, दुस्वर, आदेय, अनादय, यशकीर्ति, अयशकीर्ति और उच्चगोत्र, इनका सान्तर बन्ध होता है, क्योंकि, एक समयसे इनका बन्धविश्राम देखा जाता है। तिर्यग्गति, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी और नीचगोत्र, इनका सान्तर-निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, सर्व एकेन्द्रियों में सान्तर बन्धवाली इन प्रकृतियोंका तेजकायिक व वायुकायिक जीवोंमें निरन्तर बन्ध पाया जाता है । परघात, उच्छ्वास, बादर, पर्याप्त और प्रत्येकशरीर प्रकृतियोंका बन्ध सान्तर निरन्तर होता है।
शंका-इनका निरन्तर वन्ध कैसे होता है ?
समाधान-क्योंकि एकेन्द्रियोंमें उत्पन्न हुए देवोंके अन्तर्मुहूर्त काल तक इनका निरन्तर बन्ध देखा जाता है।
__ एकेन्द्रियों में मिथ्यात्व, असंयम, कपाय और योगके भेदसे चार मूल प्रत्यय होते हैं । उत्तर प्रत्ययों में पांच मिथ्यात्व प्रत्यय, क्योंकि, पांच मिथ्यात्वोंके साथ एकेन्द्रियोंमें उत्पन्न हुए नाना मनुष्यों के पांच मिथ्यात्व प्रत्यय पाये जाते हैं । एक एकेन्द्रियासंयम, छह प्राणि-असंयम, सोलह कषाय, स्त्री और पुरुष वेदके विना सात नोकषाय, तथा दो औदारिक व कार्मण ये तीन योग, ये सब ही अड़तीस उत्तर प्रत्यय एकेन्द्रियोंमें होते हैं । विशेषता केवल यह है कि तिर्यगायु व मनुष्यायुके कार्मण प्रत्ययके विना सैंतीस प्रत्यय होते हैं । ग्यारह व अठारह एक समय सम्बन्धी जघन्य और उत्कृष्ट
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