Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१६८ ] छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[ ३, १०२. ओरालियकायासच्चमोसवचिजोगाणमभावादो ।
__पंचिंदियअपज्जत्ताणं भणिस्सामो- एत्थ बज्झमाणपयडीओ पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तेहि बज्झमाणाओ चेव, ण अण्णाओ । एत्थ एदासिं उदयादो बंधो पुव्वं पच्छा वा वोच्छिण्णो त्ति विचारो णस्थि, संतासंताणं बंधोदयाणमेत्थ वोच्छेदाभावादो ।
पंचणाणावरणीय-च उदंसणावरणीय-मिच्छत्त-णQसयवेद-पंचिंदियजादि-तेजा- कम्मइयसरीर-वण्ण-गंध-रस-फास-अगुरुअलहुअ-तस-बादर-अपज्जत्त-थिराथिर-सुहासुह-दुभग-अणादेज्जअजसकित्ति-णिमिण-णीचागोद-पंचंतराइयाणं सोदओ बंधो, धुवोदयत्तादो। णिद्दा पयला-सादा. साद-सोलसकसाय-छणोकसाय-तिरिक्खाउ--मणुस्साउ--तिरिक्खगइ-मणुसगइपाओग्गाणुपुवीण सोदय-परोदओ बंधो; उदएण विणा वि, संते वि उदए बंधुवलंभादो । ओरालियसरीर-हुंडसंठाण-ओरालियसरीरअंगोवंग-असंपत्तसेवसंघडण-उवघाद पत्तेयसरीराणं सोदय-परोदओ बंधो, विग्गहगदीए उदयाभावे वि अण्णत्थ उदए संते वि बंधदसणादो । थीणगिद्धितिय-इत्थिपुरिसवेद-एइंदिय-बीइंदिय-तीइंदिय-चउरिंदिय-पंचसंठाण-पंचसंघडण-परघादुस्सास-आदावुओवदोविहायगइ-थावर-सुहुम-पज्जत्त-साहारणसरीर-सुभग सुस्सर-दुस्सर-आदेज्ज-जसकित्ति-उच्चा
चालीस प्रत्यय होते है, क्योंकि, उनके औदारिक काययोग और असत्य मृपा वचनयोगका अभाव है। .
पंचेन्द्रिय अपर्याप्तोंकी प्ररूपणा करते हैं- यहां बध्यमान प्रकृतियां पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तों द्वारा बांधी जानेवाली ही हैं, अन्य नहीं है । यहां 'इनका उदयसे बन्ध पूर्वमें या पश्चात् व्युच्छिन्न होता है' यह विचार नहीं है, क्योंकि, सत् और असत् बन्धोदयके व्युच्छेदका यहां अभाव है।
पांच शानावरणीय, चार दर्शनावरणीय, मिथ्यात्व, नपुंसकवेद, पंचेन्द्रियजाति, तैजस व कार्मण शरीर, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, त्रस, बादर, अपर्याप्त, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, दुर्भग, अनादेय, अयशकीर्ति, निर्माण, नीचगोत्र और पांच अन्तराय, इनका स्वोदय बन्ध होता है, क्योंकि, वे ध्रुवोदयी प्रकृतियां हैं । निद्रा, प्रचला, साता व असाता वेदनीय, सोलह कषाय, छह नोकषाय, तिर्यगाय, मनुष्याय और तिर्यग्गति व मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, इनका स्वोदय-परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, उदयके विना भी, तथा उदयके होने पर भी इनका बन्ध पाया जाता है। औदारिकशरीर, हुण्डसंस्थान, औदारिकशरीरांगोपांग, असंप्राप्तसृपाटिकासंहनन, उपघात और प्रत्येकशरीरका स्वोदय-परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, विग्रहगतिमें उदयाभावके होनेपर भी, तथा अन्यत्र उदयके होते हुए भी इनका बन्ध देखा जाता है। स्त्यानगृद्धित्रय, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जाति, पांच संस्थान, पांच संहनन, परघात, उच्छ्वास, आताप, उद्योत, दो विहायोगतियां, स्थावर, सूक्ष्म, पर्याप्त, साधारणशरीर, सुभग, सुस्वर, दुस्वर, आदेय, यशकीर्ति और उच्चगोत्र, इनका परोदयसे बन्ध
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