Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१२८] छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[ ३, ७४. संठाणविरहिदपंचसंठाण-असंपत्तसेवसंघडणविरहिदपंचसंघडण-मणुसगइपाओग्गाणुपुब्बी-परघादुस्सासादावुज्जोव-दोविहायगइ-थावर-सुहुम-पज्जत्त-साहारण-सुभग-सुस्सर-दुस्सर-आदेज्ज-जसकित्ति-उच्चागोद-इत्थि-पुरिसवेदाणमपज्जत्तएसु' उदयाभावादो अवसेसाणं पयडीणमुदयवोच्छेदाभावादो च पुव्वं पच्छा बंधोदयवोच्छेदविचारो णस्थि ।।
पंचणाणावरणीय-च उदंसणावरणीय-मिच्छत्त-णQसयवेद-तिरिक्खाउ-तिरिक्खगइ-तेजाकम्मइयसरीर-वण्ण-गंध-रस-फास-अगुरुअलहुअ-तस-बादर-अपज्जत्त-थिराथिर-सुभासुभ-दूभगअणादेज्ज-अजसकित्ति-णिमिण-पंचंतराइय-णीचागादाणं सोदएणेव बंधो । णिद्दा-पयला-सादासाद-सोलसकसाय-छण्णोकसायाणं सोदय-परोदएणेव बंधो, अद्धवोदयत्तादो । ओरालियसरीरहुंडसंठाण-ओरालियसरीरअंगोवंग-असंपत्तसेवट्टसंघडण-उवघाद-पत्तेयसरीराणं सोदय-परोदएण बंधो, विग्गहगदीए एदासिमुदयाभावादो । तिरिक्खगदिपाओग्गाणुपुवीए वि सोदय-परोदएण बंधो, विग्गहगदीए चेव उदयादो। अण्णपयडीणं परोदएणेव बंधो, एत्थ एदासिमुदयाभावादो।
जाति, हुण्डसंस्थानसे रहित पांच संस्थान, असंप्राप्तसृपाटिकासंहननसे रहित पांच संहनन, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, परघात, उच्छ्वास, आताप, उद्योत, दो विहायोगतियां, स्थावर, सूक्ष्म, पर्याप्त, साधारण, सुभग, सुस्वर, दुस्वर, आदेय, यशकीर्ति, उच्चगोत्र, स्त्रीवेद और पुरुषवेद, इनका अपर्याप्तोंमें उदय न होनेसे तथा शेष प्रकृतियोंका उदयव्युच्छेद न होनेसे यहां बन्ध और उदयके पूर्व या पश्चात् व्युच्छेद होनेका विचार नहीं है।
पांच ज्ञानावरणीय, चार दर्शनावरणीय, मिथ्यात्व, नपुंसकवेद, तिर्यगायु, तिर्यग्गति, तैजस व कार्मण शरीर, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, त्रस, बादर, अपर्याप्त, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, दुर्भग, अनादेय, अयशकीर्ति, निर्माण, पांच अन्तराय और नीचगोत्र, इनका खोदयसे ही बन्ध होता है। निद्रा, प्रचला, साता व असाता वेदनीय, सोलह कषाय और छह नोकषाय, इनका स्वोदय-परोदयसे ही बन्ध होता है, क्योंकि ये अनवोदयी प्रकृतियां हैं। औदारिकशरीर, हण्डसंस्थान, औदारिकशरीरांगोपांग, असंप्राप्तसृपाटिकासंहनन, उपघात और प्रत्येकशरीर, इनका खोदयपरोदयसे ही बन्ध होता है, क्योंकि, विग्रहगतिमें इनके उदयका अभाव है। तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वीका भी स्वोदय-परोदयसे ही बन्ध होता है, क्योंकि, उसका विग्रहगतिमें ही उदय रहता है । अन्य प्रकृतियोंका परोदयसे ही बन्ध होता है, क्योंकि, यहां उनके उदयका अभाव है।
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१ प्रतिषु -पुरिसवेदा णqसयपज्जत्तएसु' इति पाठः । २ प्रतिषु ' रासिमुदयाभावादो' इति पाठः ।
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