Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३, ५६. ]
सत्तमढवी बंधसामित्त परूवणा
सोदओ चेव, सिमेत्थ अपज्जत्तकाले अभावादो । पुरिसवेद - ओरालियसरीर-समचउरससंठाणओरालियसरीरअंगोवंग-वज्जरिसहसंघडण -पसत्थविहाय गइ - सुभग- सुस्सर - आदेज्ज-जस कित्तीर्ण परोदओ वंधो, एदेसिमुदयस्स एत्थ विरोहादो ।
पंचणाणावरणीय-छदंसणावरणीय - बारहकसाय-भय- दुगुंछा - पंचिंदियजादिः -ओरालियतेजा-कम्मइयसरीर-ओरालिय सरीरअंगोवंग-वण्णचउक्क - अगुरुवलहुव-उवघाद - परघाद-उस्सासतस-बादर-पज्जत्त-पत्तेयसरीर - णिमिण-पंचंतराइयाणं णिरंतरो बंधो, एत्थ धुवबंधित्तादो । सादासाद-ह्रस्स-रदि-अरदि-सोग-थिराथिर - सुभासुभ-जसकित्ति - अजस कित्तीणं सांतरो बंधो, सव्वगुणट्ठाणेसु एदासिमेगाणेगसमयबंधसंभवादो । पुरिसवेद- समचउरससंठाण वज्जरिसहसंघडण -पसत्थविहायगइ-सुभग-सुस्सर- आदेज्जाणं मिच्छादिट्ठि - सासणसम्मादिट्टीसु सांतरा बंधो, एगाणेगसमयबंधसंभवादो । सम्मामिच्छादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठीसु णिरंतरो बंधो, पडिवक्खपयडीं धाभावाद |
एदाओ यडीओ बंधतमिच्छाइट्ठिस्स मूलपच्चया चत्तारि । णाणासमयउत्तरपच्चया
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दृष्टि गुणस्थान में स्वोदय- परोदय बन्ध होता है । शेष गुणस्थानों में स्वोदय ही बन्ध होता है, क्योंकि, मिथ्यादृष्टिको छोड़कर शेष गुणस्थान यहां अपर्याप्तकालमें नहीं होते । पुरुषवेद, औदारिकशरीर, समचतुरस्रसंस्थान, औदारिकशरीरांगोपांग, वज्रर्षभसंहनन, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर, आदेय और यशकीर्ति प्रकृतियोंका परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, इनके उदयका यहां विरोध है ।
पांच ज्ञानावरणीय, छह दर्शनावरणीय, बारह कषाय, भय, जुगुप्सा, पंचेन्द्रियजाति, औदारिक तैजस व कार्मण शरीर, औदारिकशरीरांगोपांग, वर्णादिक चार, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, निर्माण और पांच अन्तराय, इनका निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, ये प्रकृतियां यहां ध्रुवबन्धी हैं । साता व असातावेदनीय, हास्य, रति, अराति, शोक, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, यशकीर्ति और अयशकीर्ति प्रकृतियोंका सान्तर बन्ध होता है, क्योंकि, सब गुणस्थानों में इनका एक और अनेक समय तक बन्ध सम्भव है । पुरुषवेद, समचतुरस्रसंस्थान, वज्रर्षभसंहनन, प्रशस्तविहायोगति, सुभग, सुस्वर और आदेय, इन प्रकृतियों का मिथ्यादृष्टि व सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानों में सान्तर बन्ध होता है, क्योंकि, यहां इनका एक-अनेक समय तक बन्ध सम्भव है । सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानों में उनका निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, यहां इनकी प्रतिपक्ष प्रकृतियोंके बन्धका अभाव है ।
इन प्रकृतियोंको बांधनेवाले मिथ्यादृष्टि नारकी के मूल प्रत्यय चार, नाना समय
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