Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१०८] छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[३, ५६. एक्कवंचास । एगसमइयजहण्णुक्कस्सपच्चया दस अट्ठारस । सासणसम्मादिट्ठिस्स मूलपच्चया तिण्णि, णाणासमयउत्तरपच्चया चउवेत्तालीस, एगसमयजहण्णुक्कस्सपच्चया दस सत्तारस । सम्मामिच्छादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठीसु मूलपच्चया तिषिण, उत्तरपच्चया चालीस, एगसमयजहण्णुक्कस्सपच्चया णव सोलस ।
____एदाओ सव्वपयडीओ मिच्छाइट्ठि-सासणसम्मादिट्ठिणो च तिरिक्खगइसंजुत्तं बंधंति, सम्मामिच्छादिट्टि-असंजदसम्मादिट्ठिणो मणुसगइसंजुत्तमुभयत्थ अण्णगईणं बंधाभावादो । णेरइया सामी । बंधद्धाणं बंधविणट्ठाणं च सुगमं । पंचणाणावरणीय-छदसणावरणीय-बारसकसाय-भय-दुगुंछा-तेजा-कम्मइय-वण्ण-गंध-रस-फास-अगुरुअलहुअ-उवघाद-णिमिण-पंचतराइयाणं मिच्छाइट्ठिम्हि चउब्विहो बंधो, धुवबंधित्तादो । सेसगुणट्ठाणेसु धुवबंधो पत्थि, बंधवोच्छेदमकुणमाणसासणादीणमभावादो । अवसेसाणं पयडीणं बंधो सव्वगुणट्ठाणेसु सादिअदुवो, अद्धवबंधित्तादो ।
सम्बन्धी उत्तर प्रत्यय इक्यावन, तथा एक समय सम्बन्धी जघन्य व उत्कृष्ट प्रत्यय दश और अठारह होते हैं। सासादनसम्यग्दृष्टिके मूल प्रत्यय तीन, नाना समय सम्बन्धी उत्तर प्रत्यय चवालीस और एक समय सम्बन्धी जघन्य व उत्कृष्ट प्रत्यय दश और सत्तरह होते हैं। सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानोंमें मूल प्रत्यय तीन, उत्तर प्रत्यय चालीस, तथा एक समय सम्बन्धी जघन्य व उत्कृष्ट प्रत्यय नौ और सोलह होते हैं ।
इन सब प्रकृतियों को मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि तिर्यग्गतिसे संयुक्त बांधते हैं, तथा सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि मनुष्यगतिसे संयुक्त बांधते हैं, क्योंकि, दोनों जगह अन्य गतियोंके बन्धका अभाव है । नारकी जीव इनके बन्धके स्वामी हैं । बन्धाध्वान और बन्धविनष्टस्थान सुगम हैं ।
___ पांच ज्ञानावरणीय, छह दर्शनावरणीय, बारह कषाय, भय, जुगुप्सा, तैजस व कार्मण शरीर, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पांच अन्तराय, इनका मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें चारों प्रकारका बन्ध होता है, क्योंकि, ये ध्रुवबन्धी प्रकृतियां हैं। शेष गुणस्थानोंमें ध्रुव बन्ध नहीं है, क्योंकि, इनके बन्धव्युच्छेदको न करनेवाले सासादनसम्यग्दृष्टि आदिकोंका अभाव है। शेष प्रकृतियोंका बन्ध सब गुणस्थानोंमें सादि और अध्रुव होता है, क्योंकि, वे प्रकृतियां अध्रुवबन्धी हैं।
१ प्रतिषु ' मूलपयडी' इति पाठः । २ प्रतिषु · मिच्छाइवीहि ' इति पाठः ।
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