Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३, ६६. ] तिरिक्खगदीए णिहाणिद्दादीणं बंधसामित्तं
[१२१ मणुसगइ-मणुसगइपाओग्गाणुपुव्वीणं परोदएणेव बंधो । ओरालियसरीर-ओरालियसरीरअंगोवंगाणं सोदय-परोदएण बंधो, विग्गहगदीए उदयाभावादो । तिरिक्खगदिपाओग्गाणुपुवीए वि सोदयपरोदएण बंधो, विग्गहगदीए विणा अण्णत्थ उदयाभावादो ।
थीणगिद्धित्तिय-अणताणुबंधिचउक्काणं णिरंतरो बंधो, धुवबंधित्तादो । इत्थिवेदमणुसगइ-चउसंठाण-पंचसंघडण-मणुसगइपाओग्गाणुपुवी-उज्जोव-अप्पसत्थविहायगइ-दुभगदुस्सर-अणादेज्जाणं सांतरो बंधो, एगसमएण बंधुवरमदंसणादो। तिरिक्खाउ-मणुस्साउआणं णिरंतरो बंधो, जहण्णेण वि एगसमयबंधाणुवलंभादो । तिरिक्खगइ-ओरालियदुग-तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुवी-णीचागोदाणं सांतर-णिरंतरो, तेउ-वाउकाइयाणं तेउ-वाउकाइय-सत्तमपुढवीणेरइएहितो आगंतूण पंचिंदियतिरिक्ख-तप्पज्जत-जोणिणीसु उप्पण्णाणं सणक्कुमारादिदेव-णेरइएहिंतो तिरिक्खेसुप्पण्णाणं च णिरंतरबंधदसणादो। णवरि सासणे सांतरो चेव, तस्स तेउ-वाउकाइएसु अभावादो सत्तमपुढवीदो तग्गुणेण णिग्गमणाभावादो च । ओरालियदुगस्स
मनुष्यायु, मनुष्यगति और मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वीका परोदयसे बन्ध होता है।
औदारिकशरीर और औदारिकशरीरांगोपांगका स्वोदय-परोदयसे बन्ध होता है, क्योंकि, विग्रहगतिमें इनका उदय नहीं रहता। तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वीका भी खोदय-परोदयसे वन्ध होता है, क्योंकि, विग्रहगतिको छोड़कर अन्यत्र उसके उदयका अभाव है।
स्त्यानगृद्धित्रय और अनन्तानुबन्धिचतुष्कका निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, ये ध्रुवबन्धी हैं । स्त्रीवेद, मनुष्यगति, चार संस्थान, पांच संहनन, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी उद्योत, अप्रशस्तविहायोगति, दुर्भग, दुस्वर और अनादेय, इनका सान्तर बन्ध होता है. क्योंकि, एक समयमें इनके बन्धका विश्राम देखा जाता है । तिर्यगायु और मनुष्यायुका निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, जघन्यसे भी इनका एक समय बन्ध नहीं पाया जाता। तिर्यग्गति, औदारिकद्विक, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी और नीचगोत्र, इनका सान्तर-निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, तेजकायिक व वायुकायिकोंके तथा तेजकायिक, वायुकायिक व सप्तम पृथिवीके नारकियोंमेंसे आकर पंचेन्द्रिय तिर्यंच और उसके पर्याप्त व योनिमतियों में उत्पन्न हुए जीवोंके, और सनत्कुमारादि देव व नारकियोंमेंसे तिर्यंचोंमें उत्पन्न हुए जीवोंके भी इनका निरन्तर बन्ध देखा जाता है। विशेषता यह है कि सासादन गुणस्थानमें सान्तर ही बन्ध होता है, क्योंकि, वह गुणस्थान तेजकायिक और वायुकायिक जीवोंमें होता नहीं है, तथा सप्तम पृथिवीसे इस गुणस्थानके साथ निर्गमन भी नहीं होता । औदारिकद्विकका
१ काप्रतौ -तिरिक्खसपज्जत्त- ' अ-आप्रत्योः ‘तिरिक्खतसपज्जत्त-' इति पाठः।
२ प्रतिघु ' उप्पण्णाणं ओरालियसरीरअंगोवंग सणक्कुमारादि-' इति पाठः। रु.बं. १६.
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