Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[ ३, २८. मिच्छाइटिप्पहुडि जाव अपुव्वकरणपविट्ठउवसमा खवा बंधा । अपुवकरणद्धाए चरिमसमयं गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥२८॥
एदेण बंधद्धाणं गुणगयबंधसामित्तं बंधविणट्ठाणं च परूविदं । तेणेदं देसामासियं दट्ठव्वमण्णहा सेसत्थाणमेत्थ संभवाभावादो । तेणेदेण सूइदत्थपरूवणा कीरदे- हस्स-रदिभय-दुगुंछाणं बंधोदया समं वोच्छिज्जंति, अपुवकरणचरिभसमए चदुण्णं वोच्छेदुवलंभादो । सोदय-परोदएहि बंधो, धुवोदयत्ताभावादो परोदए वि बंधविरोहाभावादो । भय-दुगुंछाणं सव्वगुणट्ठाणेसु णिरंतरो बंधो, धुवबंधित्तादो । हस्स-रदीण मिच्छाइट्टिप्पहुडि जाव पमत्तसंजदो त्ति सांतरो बंधो, एत्थ पडिवक्खपयडिबंधुवलंभादो । उवरि णिरंतरो, पडिवक्खपयडिबंधाभावादो। पच्चयपरूवणाए णाणावरणभंगो । मिच्छाइट्टी चउगइसंजुत्तं, एदासिं बंधस्स चउगइबंधेण सह विरोहाभावादो। णवरि हस्स-रदीओ तिगइसंजुत्तं बंधइ, तब्बंधस्स
मिथ्यादृष्टिसे लेकर अपूर्वकरणप्रविष्ट उपशमक और क्षपक तक बंधक हैं। अपूर्वकरणकालके अन्तिम समयको प्राप्त होकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है । ये बन्धक हैं, शेष जीव अबन्धक हैं ॥ २८॥
इस सूत्रके द्वारा बन्धाध्वान,गुणस्थानगत वन्धस्वामित्व और वन्धव्युछित्तिस्थानकी प्ररूपणा की है, इसीलिये इसे देशामर्शक सूत्र समझना चाहिये, अन्यथा यहां शेष अर्थोकी सम्भावना नहीं है। अतएव इसके द्वारा सूचित अर्थोकी प्ररूपणा करते हैं- हास्य, रति,भय और जुगुप्सा इनका बन्ध और उदय दोनों साथ व्युच्छिन्न होते हैं, क्योंकि, अपूर्वकरणके अन्तिम समयमें उक्त चारों प्रकृतियोंके वन्ध और उदय दोनोंकी व्युच्छित्ति पायी जाती है। इनका बन्ध स्वोदय-परोदयसे होता है, क्योंकि, ये ध्रुवोदयी प्रकृतियां नहीं हैं अतः इनके परोदयसे भी बन्ध होनेमें कोई विरोध नहीं है। भय और जुगुप्साका सब गुणस्थानों में निरन्तर बन्ध है, क्योंकि, वे ध्रुवबन्धी हैं । हास्य और रतिका मिथ्यादृष्टिसे लेकर प्रमत्तसंयत तक सान्तर बन्ध है, क्योंकि, यहां प्रतिपक्ष प्रकृतियोंका वन्ध पाया जाता है। प्रमत्तसंयतसे ऊपर निरन्तर बन्ध है, क्योंकि, वहां प्रतिपक्ष प्रकृतियोंके बन्धका अभाव है । प्रत्ययोंकी प्ररूपणा ज्ञानावरणके समान है।
मिथ्यादृष्टि चारों गतियोंसे संयुक्त बांधते हैं, क्योंकि, मिथ्यादृष्टिके इनके बन्धका चारों गतियोंके बन्धके साथ कोई विरोध नहीं है । विशेष इतना है कि हास्य और रतिको तीन गतियोंसे संयुक्त बांधता है, क्योंकि, इनके बन्धका नरकगतिके बन्धके साथ विरोध
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