Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३, ३०.]
ओघेण मणुस्साउअस्स बंधसामित्तपरूवणा बंधेण विणा बंधपरिसमत्तिदसणादो। बंधविरोहो अंतरमिदि किण्ण घेप्पदे ? ण, पडिवक्खपयडिबंधकदंतरेण एत्थ पओजणादो । मिच्छादिहिस्स मूलुत्तरणाणेगसमयजहण्णुक्कस्सपच्चया णाणावरणम्हि वुत्ता चेव होति । णवरि णाणासमयउक्कस्सपच्चया तेवण्णं होंति, वेउव्वियमिस्स-कम्मइयाणमभावादो । सासणस्स णाणासमयउक्कस्सपच्चया सत्तेतालीस, ओरालियमिस्सवेउव्वियमिस्स-कम्मइयाणमभावादो । असंजदसम्माइट्ठिस्स मणुसाउअं बंधमाणस्स मूलपच्चया तिण्णि, मिच्छत्ताभावादो । एगसमइयजहण्णुक्कस्सपच्चया णव सोलस । णाणासमयउत्तरपच्चया बादालं, ओरालिय-ओरालियमिस्स-वेउबियमिस्स-कम्मइयाणमभावादो। तिण्णि वि गुणट्ठाणाणि मणुस्सगइसंजुतं बंधति, तबंधस्स अण्णगईहि सह विरोहादो । चउगइमिच्छाइट्ठि-सासणसम्माइट्ठिणो सामी। दुगइअसंजदसम्मादिट्टिणो सामी, तिरिक्ख-मणुस्सगइट्टिदअसंजदसम्मादिट्ठीणं मणुस्साउबंधेण विरोहादो । बंधद्धाणं सुगमं । बंधवोच्छेदो असंजदसम्मादिहिस्स अपढम-अचरिमसमए । मणुस्साउअस्स बंधो सादि-अद्धवो, बंधस्स धुवत्ताभावादो।
समाप्ति देखी जाती है।
शंका-बन्धका विरोध हो अन्तर है, ऐसा क्यों नहीं ग्रहण करते ?
समाधान-ऐसा ग्रहण इसलिये नहीं करते कि यहां प्रतिपक्ष प्रकृतिके बन्ध द्वारा किये गये अन्तरसे प्रयोजन है ।
मिथ्यादृष्टिके मूल और उत्तर नाना व एक समय सम्बन्धी जघन्य एवं उत्कृष्ट प्रत्यय ज्ञानावरणमें कहे हुए ही होते हैं । विशेष इतना है कि नाना समय सम्बन्धी उत्कृष्ट प्रत्यय तिरेपन होते हैं, क्योंकि, वैक्रियिकमिश्र और कार्मण काययोगका यहां अभाव है। सासादनसम्यग्दृष्टिके नाना समय सम्बन्धी उत्कृष्ट प्रत्यय सैंतालीस होते हैं, क्योंकि, यहां औदारिकमिश्र, वैक्रियिकमिश्र और कार्मण काययोगोंका अभाव है। मनुष्यायुको बांधनेवाले असंयतसम्यग्दृष्टिके मूल प्रत्यय तीन होते हैं, क्योंकि, उसके मिथ्यात्वका अभाव है। एक समय सम्बन्धी जघन्य व उत्कृष्ट प्रत्यय नौ और सोलह होते हैं। नाना समय सम्बन्धी उत्तर प्रत्यय ब्यालीस होते हैं, क्योंकि, यहां औदारिक, औदारिकमिश्र, वैक्रियिकमिश्र और कार्मण काययोगोंका अभाव है।
____ तीनों ही गुणस्थान मनुष्यगतिसे संयुक्त बांधते हैं, क्योंकि, उसके बन्धका अन्य गतियोंके साथ विरोध है। चारों गतियोंवाले मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि स्वामी हैं। दो गतियोंवाले असंयतसम्यग्दृष्टि स्वामी हैं, क्योंकि, तिर्यग्गति और मनुष्यगतिमें स्थित असंयतसम्यग्दृष्टियोंके मनुष्यायुवन्धसे विरोध है । बन्धाध्वान सुगम है। बन्धव्युच्छेद असंयतसम्यग्दृष्टिके अप्रथम-अचरम समयमें होता है। मनुष्यायुका बन्ध सादि-अधुव है, क्योंकि, उसके बन्धके ध्रुवताका अभाव है।
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