Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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९६ ] छक्खंडागमे बंधसामितविचओ
[ ३, ४४. . मणुसगइपाओग्गाणुपुवीणं मिच्छादिष्टिम्हि तित्थयरसंतक म्मयम्मि णिरंतो वि बंधो लब्भदि । सम्मामिच्छादिहि-असंजदसम्मादिट्ठीसु णिरंतरो बंधो, एदासिं पडिवक्वपयडीणं बंधाभावादो ।
एदाओ पयडीओ बंधमाणमिच्छाइहिस्स चत्तारि मूलपच्चया। णाणासमयउत्तरपच्चया एक्कवंचास, ओरालिय ओरालियमिस्स-इत्थि-पुरिसपञ्चयाणमभावादो । एगसमयजहण्णुक्करसपच्चया जहाकमेण दस अट्ठारस । सासणस्स मूलपच्चया तिणि, मिच्छताभावादो । णाणासमयउत्तरपच्चया चउवेत्तालीस, ओरालिय-ओरालियमिस्स-वेउवियमिस्स-कम्मइय-इत्थि-पुरिसपच्चयाणमभावादो । एगसमयजहण्णुक्कस्सपच्चया जहाकमेण दस सत्तारस । सम्मामिच्छाइट्ठिस्स मूलपच्चया तिण्णि, मिच्छत्ताभावादो। णाणासमयउत्तरपच्चया चालीस, ओघेसु पच्चएसु ओरालिय-इत्थि-पुरिसपच्चयाणमभावादो । एगसमइयजहण्णुक्कस्सपच्चया जहाकमेण णव सोलस । असंजदसम्मादिट्ठिस्स मूलपच्चया तिण्णि, मिच्छत्ताभावादो । णाणासमयउत्तरपच्चया बाएत्तालीस, ओघपच्चएसु ओरालिय-ओरालियमिस्स-इत्थि-पुरिसपच्चयाणमभावादो । एगसमइय• जहण्णुक्कस्सपच्चया जहाकमेण णव सोलस ।
प्रकृतिकी सता रखनेवाले मिथ्याष्टि जीवमें मनुष्यगति और मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वीका निरन्तर भी वन्ध पाया जाता है । सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानोंमें उक्त प्रकृतियोंका निरन्तर बन्ध है, क्योंकि, यहां इनकी प्रतिपक्ष प्रकृतियोंका बन्ध नहीं होता।
इन प्रकृतियों को वांधनेवाले मिथ्यादृष्टि नारकी जीवके मूल प्रत्यय चारों होते हैं। नाना समय सम्बन्धी उत्तर प्रत्यय इक्यावन होते हैं, क्योंकि, उसके औदारिक, औदारिकमिश्र, स्त्रीवेद, और पुरुषवेद, इन चार प्रत्ययोंका अभाव है। एक समय सम्बन्धी जघन्य
और उत्कृष्ट प्रत्यय क्रमसे दश और अठारह होते हैं। सासादनसम्यग्दृष्टिके मूल प्रत्यय तीन होते हैं, क्योंकि, उसके मिथ्यात्वका अभाव है। नाना समय सम्बन्धी उत्तर प्रत्यय चवालीस होते हैं, क्योंकि, उसके औदारिक, औदारिकमिश्र, वैक्रियिकामश्र, कार्मण, स्त्रीवेद और पुरुषवेद, इन छह प्रत्ययोंका अभाव है। एक समय सम्बन्धी जघन्य व उत्कृष्ट प्रत्यय क्रमसे दश और सत्तरह होते है । सम्यग्मिथ्याप्टिके मूल प्रत्यय तीन होते हैं, क्योंकि, उसके मिथ्यात्वका अभाव है। नाना समय सम्बन्धी उत्तर प्रत्यय चालीस होते हैं. क्योंकि. ओघप्रत्ययोंमेंसे औदारिक, स्त्रीवेद और पुरुषवेद प्रत्यय नहीं होते। एक समय सम्बन्धी जघन्य व उत्कृष्ट प्रत्यय क्रमसे नौ और सोलह होते है । असंयतसम्यग्दृष्टिके मिथ्यात्वका अभाव होनेसे मूल प्रत्यय तीन होते हैं, व नाना समय सम्बन्धी उत्तर प्रत्यय ब्यालीस होते हैं, क्योंकि, ओघप्रत्ययोंमेंसे औदारिक, औदारिकमिश्र, स्त्रोवेद और पुरुषवेद, इन चार प्रत्ययोंका अभाव है। एक समय सम्बन्धी जघन्य व उत्कृष्ट प्रत्यय यथाक्रमसे नौ और सोलह होते हैं।
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