Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ५२.] णिरयगदीए तिक्ष्यरणामकम्मरस बंधसामितं [.१०३
मिच्छाइट्टी सासणसम्माइही असंजदसम्माइट्ठी बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ ५० ॥
___ एदेण सूइदत्थस्स परूवणं कस्सामो- एत्थ बंधोदयाणं पुवावरवोच्छेदविचारो पत्थि, बंधं मोत्तूण उदयाभावादो । परोदएण बंधंति, णिरयगदीए मणुस्साउअस्स उदयविरोहादो । णिरंतरं बंधंति, एगसमएण बंधुवरमाभावादो । मिच्छाइट्ठिस्स एगूणवण्णपच्चया, वेउब्वियमिस्स-कम्मइयपच्चयाणमभावादो। सासणस्स चोदाल असंजदसम्मादिहिस्स चालीस पच्चया । सेसं सुगमं । मणुसगइसंजुत्तं बंधति । णेरइया सामी। बंधद्धाणं बंधविणवाणं च सुगमं । सादि-अद्धवो बंधो, अद्धवबंधित्तादो ।
तित्थयरणामकम्मस्स को बंधो को अबंधो ? ॥ ५१ ॥ सुगमं ।
असंजदसम्मादिट्टी बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥५२॥ तित्थयरबंधस्स उदयादो पुव्वं पच्छा वोच्छेदो होदि त्ति सण्णिकासो णस्थि, तित्थयर
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मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि बन्धक हैं। ये बन्धक हैं, शेष नारकी जीव अबन्धक हैं ॥ ५० ॥
इस सूत्रसे सूचित अर्थको प्ररूपणा करते हैं - यहां बन्ध और उदयके पूर्व या पश्चात् व्युच्छेद होनेका विचार नहीं है, क्योंकि, बन्धको छोड़कर नारकियोंमें इसके उदय नहीं रहता है । मारकी जीव इसे परोदयसे बांधते हैं, क्योंकि, नरकगतिमें मनुष्यायुके उदयका विरोध है । निरन्तर बांधते हैं, क्योंकि, एक समयमें इसके बन्धका विश्राम नहीं होता। मिथ्या दृष्टिके उनचास प्रत्यय होते हैं, क्योंकि, वैक्रियिकमिश्र और कार्मण प्रत्ययोंका यहां अभाव है । सासादनके चवालीस और असंयतसम्यग्दृष्टिके चालीस प्रत्यय होते हैं। शेष प्रत्ययप्ररूपणा सुगम है । मनुष्यायुको नारकी जीव मनुष्यगतिले संयुक्त बांधते हैं। नारकी जीव स्वामी हैं । बन्धाध्वान और बन्धविनष्स्थान सुगम हैं। इसका बन्ध सादि व अध्रुव होता है, क्योंकि, यह अध्रुवबन्धी प्रकृति है।
तीर्थकर नामकर्मका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ ५१ ॥ यह सूत्र सुगम है। असंयतसम्यग्दृष्टि बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष नारकी अबन्धक हैं ॥ ५२ ॥ तीर्थकर प्रकृतिके बन्धका उदयसे पूर्व अथवा पश्चात् व्युच्छेद होता है, इस प्रकार
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