Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे बंधसामित्सविचओ
[३, ४५. कस्सामो-पंचणाणावरणीय-छदंसणावरणीय-सादासाद-बारसकसाय-हस्स-रदि-अरदि-सोग-भयदुगुंछा-पंचिंदियजादि-तेजा-कम्मइयसरीर-वण्ण-गंध-रस-फास-अगुरुगलहुअ-उवघाद-परघादउस्सास-तस-बादर पजत्त-पत्तेयसरीर-थिराथिर-सुहासुह-अजसकित्ति-णिमिण-पंचतराइयाणं एदेसिमेत्थ बंधादयवोच्छेदो णत्थि, विरोहाभावादो । पुरिसवेद-मणुसगइ-ओरालियसरीर-समचउरससंठाण-ओरालियसरीरअंगोवंग-वज्जरिसहसंघडण-मणुसगइपाओग्गाणुपुल्वि-पसत्थविहायगइसुभग-सुस्वर-आदज्ज-जसकित्ति-उच्चागोदाणमुदओ एत्थ णत्थि चेव, विरोहादो । तम्हा एत्य एदासु पयडीसु बंधोदयवोच्छेदाणं पुव्वापुव्वविचारो णत्थि ।
पंचणाणावरणीय-चदुदंसणावरणीय-पंचिंदियजादि-तेजा-कम्मइय-वण्ण-गंध-रस-फासअगुरुअलहुअ-तस-पादर-पज्जत्त-थिराथिर सुभासुभ-अजसकित्ति णिमिण-पंचंतराइयाणं सोदओ बंधो । णिहा-पयला-सादासाद-बारसकसाय-हस्स-रदि-अरदि-सोग-भय-दुगुंछाओ सोदय-परोदएहि बझंति, सव्वगुणट्ठाणेसु परावत्तणोदयादो । उववाद मिच्छाइट्ठि असंजदसम्मादिट्ठीसु सोदय-परोदएहि बज्झइ, विग्गहगदीए उदयाभावादो। सासणसम्मादिट्ठि-सम्मामिच्छादिट्ठीसु सोदएण बज्झइ, तेर्सि तत्थ उप्पत्तीए अभावादो। परघादुस्सास-पत्तेयसरीराणि मिच्छाइटि
छह दर्शनावरणीय, सातावेदनीय, असातावेदनीय, बारह कषाय, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्ता, पंचेन्द्रियजाति, तैजस व कार्मण शरीर, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, अयशकीर्ति, निर्माण और पांच अन्तराय, इनके बन्ध और. उदयका यहां व्युच्छेद नहीं होता, क्योंकि, इसमें कोई विरोध नहीं है अर्थात् इनका बन्धोदयव्युच्छेद यथासम्भव उन उपरिम गुणस्थानोंमें होता है जो नरकगतिमें सम्भव नहीं हैं। पुरुषवेद, मनुष्यगति, औदारिकशरीर, समचतुरस्रसंस्थान, औदारिकशरीरांगोपांग, वज्रर्षभसंहनन, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, प्रशस्तविहायोगति, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशकीर्ति और उच्चगोत्र, इन कर्मोंका उदय यहां है ही नहीं, क्योंकि, नारकियों में इनके उदयका विरोध है । इसलिये यहां इन प्रकृतियोंमें बन्धव्युच्छेद और उदयव्युच्छेदको पूर्वापरताका विचार नहीं है।
पांच ज्ञानावरणीय, चार दर्शनावरणीय, पंचेन्द्रियजाति, तैजस व कार्मण शरीर, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, त्रस, बादर, पर्याप्त, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, अयशकीर्ति, निर्माण और पांच अन्तराय, इनका स्वोदय बन्ध है । निद्रा, प्रचला, साता व असाता वेदनीय, बारह कषाय, हास्य, रति, अरति, शोक, भय और जुगुप्सा, ये प्रकृतियां स्वोदय-परोदयसे बंधती हैं, क्योंकि, इनका सब गुणस्थानों में परिवर्तित उदय रहता है। उपघात प्रकृति मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानों में स्वोदय-परोदयसे बंधती है, क्योंकि, विग्रहगतिमें इसका उदय नहीं रहता । सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानोंमें यही प्रकृति स्वोदयसे बंधती है, क्योंकि, सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिध्यारष्टियोकी नारकियों में उत्पत्ति नहीं है । परघात, उच्छ्वास और प्रत्येकशरीर
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