Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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५८]
छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[३, २५. भावादो । अधवा, एदासिं संजलणोदयविसेसो चेव पच्चओ, तेण विणा बंधाणुवलंभादो ।
मिच्छादिट्ठी चउगइसंजुत्तं, तस्स सव्वगइबंधेहि विरोहाभावादो। सासणो तिगइसंजुत्तं, तस्स णिरयगइबंधेण सह विरोहादो । सम्मामिच्छाइट्ठी असंजदसम्मादिट्ठी च दुगइसंजुत्तं बंधंति, तेसिं णिरय-तिरिक्खगईहि सह विरोहादो। उवरिमा देवगइ-अगइसंजुत्तं वा बंधंति, तेसिं सेसगईहि सह विरोहादो । मिच्छाइट्ठी सासणसम्मादिट्ठी सम्मामिच्छाइट्ठी असंजदसम्मादिट्ठी चउगइया, दुगइसंजदासंजदा, सेसा मणुस्सगईया सामी । बंधद्धाणं बंधवोच्छिण्णट्ठाणं च सुत्तुद्दिट्टमिदि सुगमं । मिच्छाइटिस्स चउविहो बंधो, धुवबंधित्तादो । सेसाणं तिविहो, धुवत्ताभावादो ।
लोभसंजलणस्स को बंधो को अबंधो ? ॥२५॥ सुगम ।
मिच्छाइटिप्पहुडि जाव अणियट्टिवादरसांपराइयपविट्ठउवसमा खवा बंधा। अणियट्टिबादरद्धाए चरिमसमयं गंतूण बंधोवोच्छिज्जदि। एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ २६ ॥
अभाव है । अथवा, इन प्रकृतियोंका संज्वलनका उदयविशेष ही प्रत्यय है, क्योंकि, उसके विना इनका बन्ध पाया नहीं जाता।
मिथ्यादृष्टि इन्हें चार गतियोंसे संयुक्त बांधता है, क्योंकि, उसके सब गतियोंके बन्धके साथ कोई विरोध नहीं है । सासादनसम्यग्दृष्टि तीन गतियोंसे संयुक्त बांधता है, क्योंकि, उसके नरकगतिबन्धके साथ विरोध है । सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि दो गतियोंसे संयुक्त बांधते हैं, क्योंकि, उनके नरक व तिर्यग्गतिके साथ बन्ध होनेमें विरोध है । उपरिम जीव देवगतिसे संयुक्त या गतिसंयोगसे रहित बांधते हैं, क्योंक उनके शेष गतियोंके साथ बन्ध होने में विरोध है । मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि चारों गतियोंवाले, दो गतियोंवाले संयतासंयत, और शेष गुणस्थानवर्ती जीव मनुष्यगतिवाले स्वामी हैं । बन्धाध्वान और बन्धव्युच्छित्तिस्थान चूंकि सूत्रप्रतिपादित है अतः सुगम हैं । मिथ्यादृष्टिके इनका चारों प्रकारका बन्ध होता है, क्योंकि, वे ध्रुवबन्धी प्रकृतियां हैं। शेष जीवोंके ध्रुववन्धका अभाव होनेसे तीन प्रकारका ही वन्ध होता है।
संज्वलनलोभका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ २५ ॥ यह सूत्र सुगम है।
मिथ्यादृष्टिसे लेकर अनिवृत्तिबादरसाम्परायिकप्रविष्ट उपशमक और क्षपक तक बन्धक हैं । अनिवृत्तिबादरकालके अन्तिम समयको प्राप्त होकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है। ये बन्धक हैं, शेष जीव अबन्धक हैं ॥ २६ ॥
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