Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३, १२. ] ओघेण सादावेदणीयस्स बंधसामित्तपरूवणा
[ ३९ __ मिच्छाइटिप्पहुडि जाव सजोगिकेवलि त्ति बंधा। सजोगिकेवलिअद्धाए चरिमसमयं गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ १२ ॥
___एदं पि सुत्तं देसामासियं, सामित्तमद्धाणं बंधविणासट्ठाणं च भणिदूणण्णेसिमत्थाणमणिद्देसादो। तेणिदरेसिं परूवणा कीरदे । तं जहा- एदस्स बंधो पुव्वमुदओ पच्छा वोच्छिज्जदि, सजोगिचरिमसमये बंधे वोच्छिण्णे संते पच्छा अजोगिचरमसमए उदयवोच्छेदादो। सादावेदणीयं मिच्छाइटिप्पहुडि जाव सजोगिकेवलि त्ति सोदण परोदएण वि बज्झदि, सादासादोदयाणं परावत्तिदसणादो, स-परोदएहि बंधविरोहाभावादो च । मिच्छाइटिप्पहुडि जाव पमत्तो त्ति सांतरो बंधो, तत्थ पडिवक्खपयडीए बंधसंभवादो । उवरि णिरंतरो, पडिवक्खपयडीए बंधाभावादो। जम्हि जम्हि गुणट्ठाणे जत्तिया जत्तिया मूलपञ्चया णाणासमयउत्तरपच्चया एगसमयजहण्णुक्कस्सपच्चया च वुत्ता ताणि गुणट्ठाणाणि तेत्तिएहि पच्चएहि सादावेदणीयं बंधति ।
मिथ्यादृष्टिसे लेकर सयोगिकेवली तक सातावेदनीयके बन्धक हैं । सयोगिकेवलिकालके अन्तिम समयको प्राप्त होकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है। ये बन्धक हैं, शेष जीव अबन्धक हैं ॥१२॥
यह भी सूत्र देशामर्शक है, क्योंकि, वह स्वामित्व, बन्धाध्वान और बन्धविनाशस्थानको कहकर अन्य अर्थोका निर्देश नहीं करता। इस कारण अन्य अर्थोकी प्ररूपणा करते हैं । वह इस प्रकार है- सातावेदनीयका बन्ध पूर्वमें और उदय पश्चात् व्युच्छिन्न होता है, क्योंकि, सयोगकेवलीके अन्तिम समयमें बन्धके व्युच्छिन्न होनेपर पीछे अयोगकेवलीके अन्तिम समयमें उदयका व्युच्छेद होता है । सातावेदनीय मिथ्यादृष्टिसे लेकर सयंगिकेवली तक स्वोदयसे और परोदयसे भी बंधता है, क्योंकि, यहां साता और असाताके उदयमें परिवर्तन देखा जाता है, तथा स्व परोदयसे बन्ध होनेमें कोई विरोध भी नहीं है। मिथ्यादृष्टिसे लेकर प्रमत्त गुणस्थान तक सातावेदनीयका बन्ध सान्तर है, क्योंकि, वहां प्रतिपक्ष प्रकृति ( असाता ) का बन्ध सम्भव है । प्रमत्त गुणस्थानसे ऊपर निरन्तर बन्ध है, क्योंकि, वहां प्रतिपक्ष प्रकृतिके बन्धका अभाव है। जिस जिस गुणस्थानमें जितने जितने मूल प्रत्यय, नाना समय सम्बन्धी उत्तर प्रत्यय और एक समय सम्बन्धी जघन्य व उत्कृष्ट प्रत्यय कहे गये हैं, वे गुणस्थान उतने प्रत्ययोंसे सातावेदनीयको बांधते हैं।
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