Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
३, २०. ]
ओघेण पच्चक्खाणावरणीयको हादीणं बंधसामित्त परूवणा
[ ५१
पच्चओ | सेसकसायाणमुदओ जोगो च पच्चओ ण होदि, एत्तो उवरि तेसु संतेसु वि एदासिं बंधाभावाद।। ण मिच्छत्ताणताणुबंधि - अपच्चक्खाणावरणाणमुदओ वि एदासिं बंधस्स पच्चओ, ते विणा व बंधुवलंभादो । जस्सण्णय- वदिरेगेहि जस्सण्णयवदिरेगा होंति [तं ] तस्स कज्जमियरं च कारणं । ण चेदं पच्चक्खाणोदयं मुच्चा अण्णत्थत्थि तम्हा पच्चक्खाणोदओ चेव पच्चओ त्ति सिद्धं । मिच्छाइट्टिम्हि णट्टबंध सोलसपयडीणं बंधस्स मिच्छतोदओ चेव पच्चओ, तेण विणा तासिं बँधाणुवलंभादो | सासणम्मि डुबंधपणुवीसपयडीणं अगताणुबंधी णमुदओ चेव पच्चओ, तेण विणा तासिं बंधाणुवलंभादो । असंजदसम्मादिट्टिम्हि णबंधणवपयडीणं बंधस्स अपच्चक्खाणोदओ कारणं, तेण विणा तासिं बंधाणुवलभादो । पमत्तसंजदम्मि डुबंधछप्पयडीणं बंधस्स पमादो पच्चओ, तेण विणा तदणुवलंभादो । एवमण्णत्थ वि जाणिय वत्तव्यं ।
एदाओ पयडीओ मिच्छाइड्डी चउगइसंजुत्तं, सासणेो णिरयगईए विणा तिगइसंजुत्तं,
शेष कषायका उदय और योग प्रत्यय नहीं है, क्योंकि, पांचवें गुणस्थानके ऊपर उनके रहनेपर भी इनका बन्ध नहीं होता । मिथ्यात्व अनन्तानुवन्धी और अप्रत्याख्यानावरण प्रकृतियोंका उदय भी इन प्रकृतियों के बन्धका प्रत्यय नहीं है, क्योंकि, उनके उदयके बिना भी इनका बन्ध पाया जाता है । जिसके अन्वय और व्यतिरेकके साथ जिसका अन्वय और व्यतिरेक होता है वह उसका कार्य और दूसरा कारण होता है । और यह बात प्रत्याख्यानावरण के उदयको छोड़कर अन्यत्र है नहीं, इसलिये प्रत्याख्यानाचरणका उदय ही अपने बन्धका प्रत्यय है, यह बात सिद्ध हुई । मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में व्युच्छिन्न सोलह प्रकृतियों के बन्धका प्रत्यय मिथ्यात्वका उदय ही है, क्योकि, उसके विना उन सोलह प्रकृतियोंका बन्ध पाया नहीं जाता। सासादनगुणस्थानमें व्युच्छिन्न पच्चीस प्रकृतियोंके बन्धका अनन्तानुबन्धिचतुष्कका उदय ही प्रत्यय है, क्योंकि, उसके विना इन पचीस प्रकृतियोंका वन्ध पाया नहीं जाता। असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में व्युच्छिन्न नौ प्रकृतियोंके वन्धका अप्रत्याख्यानावरणका उदय कारण है, क्योंकि, उसके विना उनका बन्ध पाया नहीं जाता । प्रमत्तसंयत गुणस्थानमें व्युच्छिन्न छह प्रकृतियोंके बन्धका प्रत्यय प्रमाद है, क्योंकि, उसके बिना उनका बन्ध पाया नहीं जाता। इसी प्रकार अन्यत्र भी जानकर कहना चाहिये ।
इन प्रकृतियों को मिथ्यादृष्टि चारों गतियोंसे संयुक्त, सासादनसम्यग्दृष्टि नरक
५ प्रतिषु 'अण्णत्थ त्ति ' इति पाठः ।
Jain Education International
२ अप्रतौ ' गिरयगई ' आ-काप्रत्योः ' गिरयगर' इति पाठः ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org