Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[ ३, ११.
इसंजुत्तबंधपुच्छाए यत्थो -- मिच्छाइट्ठी चउगइसंजुत्तं, सासणो तिगइसंजुत्तं, सम्मामिच्छाइट्ठी असंजदसम्माइट्ठी देव- मणुस्सगइसंजुत्तं, उवरिमा देवगइसंजुत्तं णिद्दा - पयलाओ दो वि बंधंति । कदिगदिया सामी, एदिस्से पुच्छाए बुचदे- मिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी सम्मामिच्छाइट्ठी असंजदसम्माइट्ठी चउगइया, दुर्गादिसंजदासंजदा, उवरिमा मणुस्सगईया सामी । अद्धाणं सुगमं । वोच्छिण्णपदेसो वि सुगमो । किं सादिओ त्ति पुच्छाए वुच्चदेमिच्छाइट्ठिम्हि णिद्दा - पयलाणं बंधो सादिओ अणादिओ धुवो अद्भुवो त्ति चदुवियप्पो । सासणादिगुणणे तिवियप्पो, धुवत्ताभावादो । सेसं सुगमं ।
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सादावेदणीस को बंधो को अबंधो ? ॥ ११ ॥
बंध बंधयो त्ति घेत्तव्वो । एदं पुच्छासुत्तं देसामासियं, सामिपुच्छं णिद्दिसिदूण सेसपुच्छाविसयणिद्दे साकरणादो । तेणेत्थ सव्वपुच्छाओ णिद्दिसिदव्वाओ । पुच्छिदसिस्ससंसयफुसणमुत्तरमुत्तं भणदि
गतिसंयुक्त बन्धसम्बन्धी प्रश्नका अर्थ कहते हैं - मिथ्यादृष्टि जीव चारों गतियोंसे संयुक्त, सासादनसम्यग्दृष्टि तीन गतियोंसे संयुक्त, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि देव व मनुष्य गति से संयुक्त, तथा उपरिम जीव देवगतिसे संयुक्त निद्रा व प्रचला दोनों प्रकृतियोंको बांधते हैं ।
' कितने गतियोंवाले जीव उक्त दोनों प्रकृतियों के स्वामी हैं ? ' इस प्रश्नका उत्तर कहते हैं- मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि चारों गतियोंवाले; दो गतियोंवाले संयतासंयत, तथा उपरिम जीव मनुष्यगतिवाले स्वामी होते हैं । बन्धाध्वान सुगम है । चरम समयादिरूप बन्धव्युच्छिन्नप्रदेश भी सुगम है । ' उक्त प्रकृतियों का बन्ध क्या सादि है ? इस प्रश्नका उत्तर कहते हैं - मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें निद्रा और प्रचला प्रकृतियों का बन्ध सादिक, अनादिक, ध्रुव और अध्रुव इस प्रकार चारों तरहका होता है । सासादनादि गुणस्थानों में ध्रुव बन्धके न होनेसे शेष तीन प्रकारका बन्ध होता है । शेष सूत्रार्थ सुगम है ।
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सातावेदनीयका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ ११ ॥
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'बन्ध' शब्द से बन्धकरूप अर्थ ग्रहण करना चाहिये । यह पृच्छासूत्र देशामर्शक है, क्योंकि, वह स्वामिविषयक पृच्छाका निर्देश करके शेष पृच्छाविषयक निर्देश नहीं करता । इसलिये यहां सब पृच्छाओंका निर्देश करना चाहिये । शंकायुक्त शिष्यके संशयको दूर करनेके लिये उत्तर सूत्र कहते हैं----
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