Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३, १०. ओघेण णिद्दा-पयलाणं बंधसामित्तपरूवणा
। ३७ सांतरं णिरंतरं सांतर-णिरंतरं बझंति ? एदाओ णिरतरं बझंति, सत्तेतालधुवपयडीसु पादादो । किं पच्चरहि बंधदि त्ति पुच्छाए वुच्चदे-मिच्छाइट्ठी चदुहि मूलपच्चएहि पणवण्णणाणासमयुत्तरपच्चएहि दस-अट्ठारसएगसमयजहण्णुक्कस्सपच्चएहि, सासणो मिच्छत्तेण विणा तिहि मूलपचएहि पंचासुत्तरपच्चएहि दस सत्तारसएगसमयजहण्णुक्कस्सपञ्चएहि, सम्मामिच्छाइट्ठी तिहि मूलपच्चएहि तेदालुत्तरपच्चएहि एगसमयणव-सोलसजहण्णुक्कस्सपञ्चएहि, असंजदसम्माइट्ठी तिहि मूलपच्चएहि छादालुत्तरपच्चएहि एगसमयणव-सोलसजहण्णुक्कस्सपञ्चएहि, संजदासंजदो मिस्सासंजमेण सहिदकसाय जोगदोमूलपच्चएहि सत्ततीसुत्तरपच्चएहि एगसमइयअट्ठ-चोदसजहण्णुकस्सपञ्चएहि, पमतसंजदो दोहि मूलपञ्चएहि चदुवीसुत्तरपच्चएहि एगसमयपंच-सत्तजहण्णुकस्सपच्चएहि, अप्पमत्तसंजदो अपुव्वकरणो च दोहि मूलपच्चएहि बावीसुत्तरपञ्चएहि एगसमयपंचसत्तजहण्णुक्कस्सपञ्चरहि बंधति ।
शंका-उक्त दोनों प्रकृतियां क्या सान्तर, निरन्तर या सान्तर-निरन्तर बंधती है?
समाधान-ये दोनों प्रकृतियां निरन्तर बंधती हैं, क्योंकि, ये सैंतालीस ध्रुव प्रकृतियोंके अन्तर्गत हैं।
'ये प्रकृतियां किन किन प्रत्ययोंसे बंधती हैं ?' इस प्रश्नका उत्तर कहते हैं-मिथ्यादृष्टि जीव चार मूल प्रत्ययोंसे, पचवन नाना समय सम्बन्धी उत्तर प्रत्ययोंसे,तथा दश और अटारह एक समय सम्बन्धी जघन्य व उत्कृष्ट प्रत्ययोंसे निद्रा एवं प्रचला प्रकृतियों को बांधते है। सासादनसम्यग्दृष्टि मिथ्यात्वके विना तीन मूल प्रत्ययोंसे, पचास उत्तर प्रत्ययोंसे, तथा
श और सत्तरह एक समय सम्बन्धी जघन्य व उत्कृष्ट प्रत्ययासे उक्त प्रकृतियोंको बांधते हैं । सम्यमिथ्यादृष्टि तीन मूल प्रत्ययोंसे, तेतालीस उत्तर प्रत्ययोंसे, तथा एक समय सम्बन्धी नौ व सोलह जघन्य व उत्कृष्ट प्रत्ययोंसे उक्त प्रकृतियोंको बांधते हैं। असंयतसम्यग्दृष्टि तीन मूल प्रत्ययोंसे, ख्यालीस उत्तर प्रययोंसे, तथा एक समय सम्बन्धी नौ और सोलह जघन्य व उत्कृष्ट प्रत्ययोंसे उक्त प्रकृतियोंको बांधते हैं । संयतासंयत मिश्र असंयम (संयमासंयम) के साथ कपाय एवं योग रूप दो मूल प्रत्ययोंसे, सैंतीस उत्तर प्रत्ययोंसे, तथा एक समय सम्बन्धी आठ व चौदह जघन्य और उत्कृष्ट प्रत्ययोंसे उक्त प्रकृतियोंको बांधते हैं । प्रमत्तसंयत दो मूल प्रत्ययोंसे, चौबीस उत्तर प्रत्ययोंसे, तथा एक समय सम्बन्धी पांच और सात जघन्य व उत्कृष्ट प्रत्ययोंसे उक्त प्रकृतियों को बांधते हैं। अप्रमत्तसंयत और अपूर्वकरणगुणस्थानवी जीव दो मूल प्रत्ययोंसे, बाईस उत्तर प्रत्ययोंसे, तथा एक समय सम्बन्धी पांच और सात जघन्य व उत्कृष्ट प्रत्ययोंसे उक्त प्रकृतियोंको बांधते हैं।
१ प्रतिषु 'पमत्तसंजदो हि' इति पाठः ।
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