Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
३, १६.} विण मिच्छत्तादीणं बंधसामित्तपत्रणा
[ ४५ [णिरयगइ-] णिरयगइपाओग्गाणुपुवीणं । बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिंदिय-सुहुम-साहारण अपजत्ताणं वेउब्वियदुगेण विणा तेवण्णा पच्चया ।
मिच्छतं च उगइसंजुत्तं, णबुंसयवेदं देवगईए' विणा तिगइसंजुत्तं, णिरयाउ-णिरयगइ-णिरयगइपाओग्गाणुपुब्बिणामाओ णिरयगइसंजुतं, हुंडसंठाणं देवगई मोत्तूण तिगइसंजुत्तं, असंपत्तसेवट्टसरीरसंघडण-अपज्जत्तणामाओ तिरिक्ख-मणुसगइसंजुत्तं, सेसाओ तिरिक्खगइसंजुत्तं बंधंति ।
मिच्छत्त-णसयवेद-टुंडेसठाण-असंपत्तपेवट्टसरीरसंवडणाणं च उगइमिच्छाइट्ठी सामी । एइंदिय-आदाव-थावरणामाणं बंधस्स णिरयगई मोत्तूण तिगइमिच्छाइट्ठी सामी । सेसाणं पयडीणं तिरिक्ख-मणुसगइमिच्छाइट्ठी सामी । बंधद्वाणं बंधवोच्छे दट्ठाणं च सुगमं । मिच्छत्तस्स बंधो सादि-अणादि-धुव-अद्धवभेएण चउबिह। । सेसाणं बंधो सादि-अद्धयो ।
प्रकार [ नरक गति और नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्वीके भी इक्यावन प्रत्यय हैं। द्वीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रय, मूक्ष्म, साधारण और अपर्याप्त प्रकृतियोंके वैक्रियिकद्विकके विना तिरेपन प्रत्यय हैं।
मिथ्यात्वको चार गतियों से संयुक्त, नपुंसकवेदके देवगतिके विना तीन गतियोंसे संयुक्तः नारकायु, नरकगति और नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्वी नामकर्मको नरकगतिसे संयुक्त; हुण्डसंस्थानको देवगतिको छोड़ तीन गतियोंसे संयुक्त, असंप्राप्तसृपाटिकाशरीरसंहनन
और अपर्याप्त नामकर्मको तिर्यग्गति व मनुष्यातिसे संयुक्त, तथा शेष प्रकृतियों को तिर्यग्गतिसे संयुक्त वांधते हैं।
मिथ्यात्व, नपुंसकवेद, हुण्डसंस्थान और असंप्राप्तसृपाटिकासरीरसंहनन प्रकृतियोंके चारों गतियोंके मिथ्यादृष्टि स्वामी है। एकेन्द्रिय, आताप और स्थावर नामकर्मके वन्धके नरकगतिको छोड़ शेष तीन गतियोंके मिथ्यादृष्टि स्वामी है। शेष प्रकृतियों के तिर्यग्गति व मनुष्यगतिके मिथ्यादृष्टि स्वामी हैं । बन्धाध्वान और बन्धव्युच्छेदस्थान सुगम हैं। मिथ्यात्वक. बंध सादि, अनादि, ध्रुव और अध्रुव भेदसे चार प्रकार है। शेष प्रकृतियोंका बन्ध सादि और अध्रुव होता है ।
१ अमतौ —णसयवेदं व देवगईए ' इति पाठः । २ प्रतिषु — बंधवोच्छिण्णाणं ' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org