Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३, ८.]
ओघेण णिहाणिद्दादीणं बंधसामित्तपरूवणा किमेदासिं सादिओ बंधो, किमणादिओ, किं धुवो, किमद्धवो बंधो त्ति एदाओ पुच्छाओ एत्थ कादवाओ । एदासिं पुच्छाणमुत्तरपरूवणट्ठमुत्तरसुत्तं भणदि
मिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ ८ ॥
एदं देसामासियसुत्तं, सामित्तद्धाणपरूवणदोरण पुच्छासुत्तुद्दिट्ठसवत्थपरूवणादो । सामित्तमद्धाणं च सुत्तादो चेव णव्वदि त्ति ण तेसिमत्थो वुच्चदे । किमेदासिं बंधो पुव्वं वोच्छिज्जदे, किमुदओ पुव्वं वोच्छिज्जदे, एदस्सत्थो वुच्चदे-थीणगिद्धितियस्स पुव्वं बंधो वोच्छिण्णो, पच्छा उदयस्स वोच्छेदो, सासणसम्मादिट्ठिचरिमसमए बंधे फिट्टे संते पच्छा उवरि गंतूण पमत्तसंजदम्मि उदयवोच्छेदोवलंभादो । अणताणुबंधिचउक्कस्स बंधोदया समं फिट्टति, सासणसम्माइटिचरिमसमए एदेसिं बंधोदयाणं जुगवं वोच्छेददंसणादो । इत्थिवेदस्स पुव्वं बंधो पच्छा उदओ वोच्छिण्णो, सासणम्मि बंधे वोच्छिण्णे पच्छा उवरि गंतूण अणियट्टिम्हि उदयवोच्छेदादो। एवं तिरिक्खाउ-तिरिक्खगइ-तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुब्वि-उज्जोव
क्या इन प्रकृतियोंका सादिक बन्ध है, क्या अनादिक बन्ध है, क्या ध्रुव बन्ध है, या क्या अध्रुव बन्ध है, इस प्रकार ये प्रश्न यहां करना चाहिये । इन प्रश्नोंका उत्तर कहनेके लिये अगला सूत्र कहते हैं
उपर्युक्त प्रकृतियोंके मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि जीव बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष जीव अबन्धक हैं ॥ ८॥
यह देशामर्शक सूत्र है, क्योंकि, बन्धके स्वामित्व और अध्वानकी प्ररूपणा द्वारा वह पृच्छासूत्रमें उद्दिष्ट सब अर्थोका निरूपण करता है। बन्धस्वामित्व और अध्वान चूंकि सूत्रसे ही जाना जाता है अतः इन दोनोंका अर्थ यहां नहीं कहा जाता । 'क्या इनका बन्ध पहिले व्युच्छिन्न होता है या उदय पहिले व्युच्छिन्न होता है ? ' इसका अर्थ कहते हैं-स्त्यानगृद्धि आदि तीन प्रकृतियोंका पूर्वमें बन्ध व्युच्छिन्न होता है, तत्पश्चात् उदयका व्युच्छेद होता है, क्योंकि सासादनसम्यग्दृष्टिके चरम समयमें बन्धके नष्ट होनेपर पश्चात् ऊपर जाकर प्रमत्तसंयतमें इनके उद्यका व्युच्छेद पाया जाता है। अनन्तानुबन्धिचतुष्टयका बन्ध और उदय दोनों साथ नष्ट होते हैं, क्योंकि, सासादनसम्यग्दृष्टिके चरम समयमें इनके बन्ध और उदयका एक साथ व्युच्छेद देखा जाता है । स्त्रीवेदका पूर्वमें बन्ध पश्चात् उदय व्युच्छिन्न होता है, क्योंकि, सासादनगुणस्थानमें बन्धके व्युच्छिन्न होनेपर तत्पश्चात् ऊपर जाकर अनिवृत्तिकरण गुणस्थानमें उदयका व्युच्छेद होता है । इसी प्रकार तिर्यगायु, तिर्यग्गति, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी, उद्योत और नीचगोत्र प्रकृति
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