Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३, ६.]
नाणावरणीयादीनं सादि आदिबंधपरूवणा
[ २९
सामिणो । सासणसम्माइट्ठी सम्मामिच्छाइट्ठी असंजदसम्माइट्ठो वि चदुगदिया सामिणो । दुर्गादिसंजदासंजदा सामिणो । उवरिमा मणुसगदिया चेव । अद्धाणं सुत्तसिद्धं । पढमअपढमचरिम-चरिमंसमयबंधवोच्छेदपुच्छा विसयपरूवणा वि सुत्तसिद्धा चैव ।
किं सादिओ किमणादिओ किं धुवो किमद्भुवो बंधो त्ति एदिस्से पुच्छाए बुच्चदेचोद्दसपयडीणं बंधो मिच्छाइट्ठिस्स सादिओ, उवसमसेडिम्हि बंधवोच्छेदं काढूण हेट्टा ओदर बंधसादिं करिय पडिवण्णमिच्छत्ताणं सादियबंधोवलंभादो । अणादिगो, उवसमसेडिमणारूढमिच्छादिट्टिजीवाणं बंधस्स आदीए अभावादो । धुवो बंधो, अभवियमिच्छादिट्टीणं बंधस्स वोच्छेदाभावाद। । अद्भुवो, उवसम- खवगसेडिं चडणपाओग्गमिच्छाइट्टिबंधस्स धुवत्ता - भावादो । जसकित्ति-उच्चागोदाणं पि एवं चेव । णवरि अणादि- धुवबंधा णत्थि, अजसकित्ति - णीचागोदाणं पडिवक्खाणं संभवाद। । सव्वगुणड्डाणेसु सेसेसु चोदसधुवपयडीओ सादि-अनादिअद्भुवमिदि तिहि वियप्पेहि बज्झति । धुवभंगो णत्थि, तेसिं भवियाणं णियमेण बंधवोच्छेद
दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि भी चारों गतियोंके जीव स्वामी हैं । दो गतियों के संयतासंयत जीव स्वामी हैं । उपरिम गुणस्थानवर्ती मनुष्यगतिके ही जीव स्वामी हैं । बन्धाध्वान सूत्र से सिद्ध है । प्रथम, अप्रथम - अचरम और चरम समय में होनेवाले बन्धव्युच्छेदसम्बन्धी प्रश्नविषयक प्ररूपणा भी सूत्रसिद्ध ही है ।
अब ' क्या सादिक बन्ध होता है, क्या अनादिक बन्ध होता, क्या ध्रुव बन्ध होता है, या क्या अध्रुव बन्ध होता है ? ' इस प्रश्नका उत्तर कहते हैं- चौदह प्रकृतियोंका बन्ध मिथ्यादृष्टिके सादिक होता है, क्योंकि, उपशमश्रेणी में बन्धव्युच्छेद करके पुनः नीचे उतरकर बन्धका प्रारम्भ करके मिथ्यात्वको प्राप्त हुए जीवोंके सादिक बन्ध पाया जाता है । अनादिक बन्ध होता है, क्योंकि, उपशमश्रेणीपर नहीं चढ़े हुए मिथ्यादृष्टि जीवों के बन्धके आदिका अभाव है । ध्रुव बन्ध होता है, क्योंकि, अभव्य मिथ्यादृष्टि जीवोंके बन्धका कभी व्युच्छेद नहीं होता । अध्रुव बन्ध होता है, क्योंकि, उपशम और क्षपक श्रेणीपर चढ़नेके योग्य मिथ्यदृष्टि जीवोंका बन्ध ध्रुव नहीं होता । यशकीर्ति और उच्चगोत्र प्रकृतियों का भी मिथ्यादृष्टिके इसी प्रकार ही बन्ध होता है। विशेष इतना है कि इन दोनों प्रकृतियों का उसके अनादि और ध्रुव बन्ध नहीं होता, क्योंकि, इनकी प्रतिपक्षभूत अयशकीर्ति और नीच गोत्रका बन्ध सम्भव है । शेष सब गुणस्थानों में चौदह ध्रुवप्रकृतियां सादि, अनादि और अध्रुव इन तीन विकल्पोंसे बंधती हैं । वहां ध्रुव भंग नहीं है, क्योंकि, उन भव्य जीवोंके
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१ प्रतिषु 'पटम- अपदम चरिम अचरिम ' इति पाठः ।
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