Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२८ ]
जहा
किंग संजुत्तो ? एदिस्से पुच्छाए चोदसजीवसमासपडिबद्धो उत्तरो वुच्चदे । तं मिच्छाइट्ठी चदुर्गादिसंजुत्तं बंधदि । णवरि उच्चागोदं णिरय-तिरिक्खगई मोचूण दुर्गादिसंजुत्तं बंधदि । जसकित्तिं णिरयगदिं मोत्तूण तिगदिसंजुत्तं बंधदि । सासणो चोदसपडीओ रियगई मोत्तूण तिगदिसंजुत्तं बंधदि । उच्चागोदं णिरय - तिरिक्खगईओ मोत्तूण दुर्गादिसंजुत्तं बंधदि । जसकित्तिं पुण णिरयगई मोत्तूण तिगइसंजुत्तं बंधदि । सम्मामिच्छाइट्ठी असंजदसम्म इट्ठी' च सोलसपयडीओ णिरयगइ - तिरिक्खगईओ मोत्तूण दुगसंजुत्तं बंधदि । संजदासंजदप्पहुडि जाव अपुव्वकरणद्धाए संखेज्जे भागे गंतूण ट्टिदा त्ति अप्पिद सोलसपयडीओ देवगदिसंजुत्तं बंधंति । उवरिमा अगदिसंजुत्तं बंधंति ।
कदिगदीया सामिणो ? एदिस्से पुच्छाए परिहारो वुच्चदे - मिच्छादिट्ठी चदुगदिया
छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
दस अट्ठारस दसय सत्तरह णव सोलसं च दोष्णं तु । अट्ठ य चोद्दस पणयं सत्त तिए दु ति दु एयमेयं च ॥ २३ ॥
मिथ्यात्व गुणस्थानमें दश व अठारह, सासादनमें दश व सत्तरह, दो गुणस्थानों में अर्थात् मिश्र और अविरतसम्यग्दृष्टिमें नौ व सोलह, संयतासंयतमें आठ और चौदह, प्रमत्तसंयतादिक तीनमें पांच व सात, अनिवृत्तिकरणमें दो व तीन सूक्ष्मसाम्पराय में दो, तथा उपशान्तकषाय, क्षीणकषाय एवं सयोगिकेवली गुणस्थानों में एकमात्र, इस प्रकार एक जीवके एक समय में जघन्य व उत्कृष्ट बन्धप्रत्यय पाये जाते हैं ॥ २३ ॥
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'कौनसी गति से संयुक्त बन्धक है ?' इस प्रश्नका चौदह जीवसमासों से सम्बद्ध उत्तर कहते हैं । वह इस प्रकार है- मिथ्यादृष्टि जीव चारों गतियोंसे संयुक्त उक्त प्रकृतियों का बन्धक है। विशेष इतना है कि उच्चगोत्रको नरकगति और तिर्यग्गतिको छोड़कर शेष दो गतियोंसे संयुक्त बांधता है । यशकीर्तिको नरकगतिको छोड़कर तीन गतियोंसे संयुक्त बांधता है । सासादन गुणस्थान में चौदह प्रकृतियों को नरकगतिको छोड़ तीन गतियोंसे संयुक्त बांधता है, उच्चगोत्रको नरक व तिर्यग्गतिको छोड़ शेष दो गतियोंसे संयुक्त बांधता है । किन्तु यशकीर्तिको नरकगतिको छोड़ शेष तीन गतियोंसे संयुक्त बांधता है । सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीव सोलह प्रकृतियों को नरकगति व तिर्यग्गतिको छोड़ दो गतिसंयुक्त वांधते हैं । संयतासंयत से लेकर अपूर्वकरणकालके संख्यात बहुभाग जाकर स्थित जीव विवक्षित सोलह प्रकृतियों को देवगतिसंयुक्त बांधते हैं । इससे ऊपरके जीव अगतिसंयुक्त बांधते हैं ।
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' उक्त प्रकृतियों के कितने गतिवाले जीव स्वामी होते हैं ? ' इस प्रश्नका परिहार कहते हैंमिथ्यादृष्टि चारों गतियोंके जीव स्वामी हैं । सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्या
[ ३, ६.
१ गो. क. ७९२.
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२ प्रतिषु ' असंजदसम्म इट्टिणी ' इति पाठः ।
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