Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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• ३४] छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[३, ८. चदुसंठाण-चदुसंघडण-उज्जोव-अप्पसत्थविहायगदि-दूभग-दुस्सर - अणादेज्जाणमित्थिवेदभंगो, सांतरबंधित्तं पडि भेदाभावादो । णीचागोदस्स तिरिक्खगदिभंगो, तेउ-वाउक्काइएसु सत्तमपुढविणेरइएसु च णीचागोदस्स णिरंतरं बंधुवलंभादो।
किं पच्चएहि बझंति किं तेहि विणा, एदस्सत्यो बुच्चदे--- मिच्छादिट्ठी मिच्छतासंजम कसाय-जोगसण्णिदचदुहि मूलपच्चएहि पणवण्णुत्तरपच्चएहि दस-अट्ठारसएगसमयसंभविजहण्णुक्कस्सपच्चएहि य एदाओ पवडीओ बंधदि । सासणसम्माइट्ठी मिच्छत्तं मोत्तूण तीहि मूलपच्चएहि पंचासुतरपच्चएहि एगसमयसंभविददस सत्तारसजहण्णुक्कस्सपच्चएहि य एदाओ पयडीओ बंधदि । णवरि तिरिक्खाउअस्स वेउवियमिस्स-कम्मइयपच्चएहि विणा तेवण्ण ओरालियमिस्सेण च विणा सत्तेताल पच्चया मिच्छाइट्ठि-सासणाणं' होति ।
___ गइसंजुत्तपुच्छाए अत्थो वुच्चदे । तं जहा - थीणगिद्धितिय-अणताणुबंधिचउक्कं च मिच्छाइट्ठी चउगइसंजुत्तं, सासणो गिरयगईए विणा तिगइसंजुत्तं बंधइ । इत्थिवेदं मिच्छाइट्ठी सासणो च णिरयगईए विणा तिगइसंजुत्तं बंधइ । तिरिक्खाउ-तिरिक्खगइ तिरिक्ख
चार संस्थान, चार संहनन, उद्योत, अप्रशस्तविहायोगति, दुर्भग, दुस्वर और अनादेय प्रकृतियां स्त्रीवेदके समान हैं, क्योंकि, सान्तरबन्धित्वके प्रति इन प्रकृतियों में स्त्रीवेदसे कोई भेद नहीं है । नीचगोत्र तिर्यग्गतिके समान है, क्योंकि, तेजकायिक और वायुकायिक तथा सत्तम पृथिवीके नारकियों में नीचगोत्रका निरन्तर वन्ध पाया जाता है ।
अब ' सूत्रोक्त प्रकृतियां क्या प्रत्ययोंसे वंधती हैं या क्या उनके विना ? ' इसका अर्थ कहते हैं-मिथ्यादृष्टि जीव मिथ्यात्व, असंयम, कषाय और योग संज्ञावाले चार मूल प्रत्ययोंसे, पचवन उत्तर प्रत्ययोंसे, तथा एक समयमें सम्भव होनेवाले दश और अठारह जघन्य व उत्कृष्ट प्रत्ययोंसे इन प्रकृतियों को बांधते हैं । सासादनसम्यग्दृष्टि मिथ्यात्वको छोड़कर शेष तीन मूल प्रत्ययोंसे, पचास उत्तर प्रत्ययोसे, तथा एक समयमें सम्भव दश और सत्तरह जघन्य व उत्कृष्ट प्रत्ययोंसे इन प्रकृतियोंको बांधते हैं । विशेष यह कि तिर्यगायुके वैक्रियिकमिश्र और कार्मण काययोगके बिना मिथ्यादृष्टिके तिरेपन, तथा वैक्रियिकमिश्र, कार्मण और औदारिकमिश्रके विना सासादनसम्यदृष्टिके सैंतालीस प्रत्यय होते हैं।
गतिसंयुक्त प्रश्न का उत्तर कहते हैं । वह इस प्रकार है-स्त्यानगृद्धि आदि तीन तथा अनन्तानुवन्धिचतुष्कको मिथ्याधि जीव चारों गतियोंसे संयुक्त और सासादनसम्यग्दृष्टि नरकगतिके विना तीन गतियोंसे संयुक्त बांधता है । स्त्रीवेदको मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि नरकगतिके विना तीन गतियोंसे संयुक्त बांधता है। तिर्यगायु, तिर्यग्गति,
१ अप्रतौ ‘पञ्चयामिदि सासणाणं ' इति पाठः ।
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