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(२१) महाराज अर्जुनदेवके वि० संवत् १२७२के दानपत्रके अन्तमें लिखा हुआ है:-" रचितमिदं महासान्धि० राजा सलखणसंमतेन राजगुरुणा मदनेन " इससे ऐसा मालूम होता है कि पं० आशाधरके पिता सलखण ( सल्लक्षण ) महाराजा अर्जुनदेवके सन्धिविग्रह सम्बन्धी मंत्री थे । यद्यपि आशाधरके पिता महाजन थे और दानपत्रमें सम्मति देनेवाले सलखणके साथ ' राजा' पद लगा हुआ है, इससे अन्य किसी सलखण नामक राजाकी भी संभावना भी हो सकती है, परन्तु आशाधरके पिताका संधिविग्रहको मंत्रियोंका राजा होना कुछ
आश्चर्य की बात भी नहीं है । क्योंकि उस समय प्रायः महाजन | लोग ही राज्यमंत्री होते थे।
अब हम यहांपर तीनों ग्रंथोंकी प्रशस्तियों के बाकी श्लोक जो ऊपर कहीं नहीं लिखे गये हैं, भावार्थसहित उद्धत करते हैं:
प्राच्यानि संवयं जिनप्रतिष्ठाशास्त्राणि दृष्टा व्यवहारमैन्द्रम् । आम्नायविच्छेदतमश्छिदोऽयं ग्रन्थःकृतस्तेन युगानुरूपम् ॥१४॥ खण्डिल्यान्वयभूषणाल्हणसुतः सागारधर्मे रतो वास्तव्यो नलकच्छचारुनगरे कर्ता परोपक्रियाम् । सर्वज्ञार्चनपात्रदानसमयोद्योतप्रतिष्ठाग्रणीः पापासाधुरकारयत्पुनरिमं कृत्वोपरोधं मुहुः ॥१५॥ विक्रमवर्षसपञ्चाशीतिद्वादशशतेष्वतीतेषु । आश्विनसितान्त्यदिवसे साहसमल्लापराख्यस्य-॥१६॥