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महाकवि रामचन्द्र "प्रबन्धशतकर्ता" नाम से विख्यात हैं। उन्होंने स्वयं अनेक ग्रन्थों में अपने को सो गन्यों का निर्माता बतलाया है। किंतु दुर्भाग्य से उनके समस्त ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है।
रामचन्द्र ने "नाट्यदर्पप" में स्वरचित ।। रूपकों का उल्लेख किया है। इतकी सूचना प्राय: "अस्मदपज्ञे ...... इत्यादि पदों से दी गई है। जिनके नाम निम्न हैं-(1) सत्यहरिश्चन्द्र नाटक, (2) नलविलास नाटक, ( रघुविलात नाटक, (4) यादवाभ्युदय, (5) राघवाभ्युदय, (6.) रोहिपी मृगांक प्रकरप, (7.) निर्भयभीमव्यायोग, (8) कौमुदी मिनापन्द - प्रकरप, (90 सुधाकलां, (10) मल्लिकामकरन्द प्रकरप तथा(वनमाला - नाटिका।
कुमारविहारशतक, द्रव्यालंकार, और यदुविलास ये उनके अन्य प्रमुख गन्य हैं। इसके अतिरिक्त छोटे - छोटे स्तव आदि तक को मिलाकर इस समय तक उनकी केवल 39 कृतियाँ उपलब्ध हैं।'
आचार्य गुपचन्द्र के विषय में कुछ अधिक परिचय नहीं प्राप्त होता है। केवल इतना विदित होता है कि ये रामचन्द्र के सहपाठी, घनिष्ठ मित्र तथा आचार्य हेमचन्द्र के शिष्य थे। इन्होंने अपने तीसरे साथी वर्धमानगपि के साथ सोमप्रभाचार्यविरचित "कुमारपाल प्रतिबोध" का श्रवप किया था। इन गुपचन्द्र ने रामचन्द्र के साथ मिलकर दो गन्थों की रचना की है। एक तो "नाट्यदर्पप' ही है तथा द्वितीय "द्रव्यलकारवृत्ति” गन्य है। इसके अतिरिक्त गुपचन्द्र की और
. हिन्दी नाट्यदर्पप, भूमिका, पृ. 16