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चित्रकाव्य'। उन्होंने ध्वनि काव्य को भेद-प्रभेद एवं उदाहरण-पत्युदाहरप के माध्यम ते विविध रूपों में प्रस्तुत किया है, गुपीभूत व्यंग्य काव्य का सामान्य विवेचन किया है तथा चित्रकाव्य के दो भेद किये हैं - शब्दचित्र तथा अर्थचित्र । आचार्य मम्मट ने इसी आधार पर काव्य के तीन भेद किए हैं - उत्तम, मध्यम तथा अधमा वाच्य की अपेक्षा व्यंग्यार्थ जिसमें अधिक चमत्का रजनक हो वह उत्तम काव्य है।' व्यंग्याय के वैसा चमत्कार जनक न होने पर गुम्मत व्यंग्य नामक मध्यमकाव्य' तथा व्यंग्यार्थरहित शब्दचित्र तथा अर्थकि इन दो भेदों वाला अधमकाव्य है। मम्म्ट के अनुसार मध्यमकाव्य के आठ मेद हैं - अगढ, अपरांग, वाच्यतिदयंग, अस्फुट, संदिग्ध-प्रधान्य, तुल्य-प्रधान्य, काक्वाक्षिप्त तथा असुन्दर ।
1. प्रधानगुपभावाभ्यां व्यंग्यत्यैवं व्यवस्थिते। काव्ये उभे ततोऽन्यथत तच्चित्रमभिधीयते।।
वही, 3/42 2. ध्वन्यालोक, 3/43 ॐ इदमुत्तममतिशयिनि व्यंग्ये दाच्याद ध्वनिर्बुधै :कथितः
काव्यपकाश, 1/4 4. अतादृशि गुपीमतव्यंग्ये तु मध्यमम्।
काव्यप्रकाश 1/5 5. पब्दिचित्रं वाच्यचिमव्यइ. ग्यं त्ववरं स्मृतम्।।
काव्यप्रकाश 1/15 वही, 5/45-46