Book Title: Pramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Author(s): Rashmi Pant
Publisher: Ilahabad University

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Page 387
________________ 376 नायिकाओं के अलंकार : सामान्यत: स्त्रियों के 20 अलंकार माने गये हैं जो सत्त्व से उत्पन्न होने के कारपे स्तवन कहलाते हैं। ये नारी के सौन्दर्य के निखारने में सहायक होते हैं। यहाँ स्त्रीगत भावभंगिमा को ही अलंकार शब्द से अभिहित किया गया है। दशरूपककार ने स्त्रियों में यौवनावस्था में सत्त्वज स्वाभाविक जिन 20 अलंकारो को कहा है', उन्हीं को आ. हेमचन्द्र ने भी प्रतिपादित किया है। आ. हेमचन्द्र के अनुसार स्त्रियों के सत्त्व से उत्पन्न बीस अलंकार होते हैं। उन्होंने सत्व की व्याख्या करते हुये लिखा है कि जो संवेदन रूप से विस्तार को प्राप्त हो तथा अन्य देहधर्मता से ही थित हो वह सत्त्व कहलाता है। अपने इस कथन की पुष्टि में उन्होंने "देहात्मकं भवेत् सत्त्वं इस भरत-वचन को प्रस्तुत किया है। आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार ये अलंकार सत्व से उत्पन्न होने के कारण सत्वज कहलाते हैं, राजस और तामस प्रकृतिवाले शारीरों में इनका होना असंभव है। चाण्डालिनों में भी रूप और लावण्य दिखाई दो हैं किन्तु चेष्टादि अलंकार नहीं, और यदि उनमें पेष्टादि अलंकार होते भी हैं तो उत्तमता के ही सूचक है। अलंकार मात्रदेहनिष्ठ होते हैं, चित्तवृत्तिरूप नहीं। वे युवावस्था में स्पष्ट दिखाई देते हैं। बाल्यावस्था में वे अनुत्पन्न रहते हैं और वृद्धावस्था में तिरोहित हो जाते हैं। यद्यपि ये अलंकार पुरुषों के भी होते है, तथापि दशरूपक, 2/30-33 सत्वजा विंशतिः स्त्रीपामलंकाराः काव्यानुशासन, 7/33 3 संवेदनरूपात असतं यत्ततोऽन्यदेहधर्मत्वेनैव स्थितं सत्वम्। वही, वृरित, पृ. 425

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