Book Title: Pramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Author(s): Rashmi Pant
Publisher: Ilahabad University

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Page 398
________________ 387 हर्ष व धर्य से युक्त तथा रौद्र, वीर, शान्त व अद्भुत रतों से सम्बद्ध मानस- व्यापार सात्वती वृत्ति कहलाता है।' इसी को व्याख्यापित करते वे लिखते हैं कि सत्त्व - मन से उत्पन्न होने वाली वृत्ति सात्वती वृत्ति है। यद्यपि संसार की सभी वस्तुएँ त्रिगुपात्मक है तथापि तात्त्वती वृत्ति त्रिगुपात्मक होते हुए भी स्त्त्वगुप प्रधान होती है। इसमें मानसिक, वाचिक तथा आंगिक अभिनय होने पर भी मानतिक व्यापार सत्व से नियंत्रित होते हैं।' मानसिक व्यापार की प्रधानता होने से आर्जव, आधर्ष, मृदु, धैर्य आदि भावों का वर्पन होता है। उक्त भावों से युक्त तथा वीर, रौद्र, शांत तथा अद्भुत रसों में रहने वाली वृत्ति सात्वीवृत्ति है।' - - - - - - 1. सात्वतो तत्व - वागंगाभिनयं कर्म मानतम्। सार्जवाधर्ष - मुद - धैर्य - रौद्र - वीर - शमादभुतम।। हि. नाट्यदर्पप 3/5 2. सत् सत्वं प्रकाशा तयत्रास्ति तत सत्वं मनः,तत्र भवा सात्त्वती। वही, वृत्ति , पृ. 286 3 अभिनयत्रय भिधानेऽपि मानसव्यापारस्य सत्वप्रधानत्वात सत्वाभिनय एवात्र प्रधानमितरौं' गौपौ। वही, वृति, पृ. 286 + वही, 3/5

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