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आ. भरत धनंजय आदि आचार्यों के मत में सात्वती वृत्ति के सलाप उत्थापक, साइन्धात्य व परिवर्तिक ये चार अंग होते हैं।
कैशिकी वृत्ति : नाट्यदर्पफकार के अनुसार, हास्य, श्रृंगार(नृत्य गीतादि रूप) नाट्य तथा (नर्म अर्थात विष्ट परिहासादि के भेदों से युक्त कैशिकी) वृत्ति होती है।'
वे लिखते हैं कि अतिशय यक्त केश जिनके हों वे स्त्रियां कैशिका हुई अर्याव कैशिकी वृत्ति की उत्पत्ति केश शब्द से हुई है। लम्बे केशों से युक्त होने के कारण स्त्री को केशिका' कहा जाता है। उनका प्राधान्य होने से उनकी यह वृत्ति कैशिकी कहलाती है। स्त्रियों की प्रधानता होने से कैशिकी वृत्ति हास्य व श्रृंगारोचित क्रियाओं से युक्त होती है। इसमें नर्म-वाग, वेषं तथा चेष्टाओं से अग्राम्य परिहास भी रहता है। जैसे - कुमारसंभव के सातवें सर्ग में
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1. नाट्यशास्त्र, 20/41
झारूपक, 2/537 ॐ कैशिकी हास्य - श्रृंगार - नाट्य नर्मभिदात्मिका।
वही, 3/6 का पूर्वार्द्ध। + वही, विवृति, पृ. 287 5. वही, विवृति, पृ. 287